भगवान विश्वकर्मा की पूजा: महत्व और विधि

भगवान विश्वकर्मा का महत्व

भगवान विश्वकर्मा, जिन्हें प्राचीन काल का सबसे प्रमुख सिविल इंजीनियर और देव शिल्पकार माना जाता है, की पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन होती है। इस दिन को विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन उनका जन्म हुआ था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल की कई महान रचनाएँ जैसे सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर युग की द्वारका, और कलियुग का हस्तिनापुर भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित मानी जाती हैं।
मशीनों की पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। वे देवताओं के लिए शस्त्र, आभूषण, महल और नगरों का निर्माण करते थे। यह मान्यता है कि सृष्टि में जो भी सृजनात्मक वस्तुएं हैं, उनका आधार भगवान विश्वकर्मा हैं। इस दिन उद्योगों, फैक्ट्रियों, कार्यशालाओं और मशीनों की पूजा की जाती है ताकि उनके प्रति आभार व्यक्त किया जा सके।
पूजा की विधि
इस दिन प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद पूजा सामग्री जैसे हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, फल, मिठाई, दीप और रक्षासूत्र एकत्र करें। घर और कार्यस्थल के लोहे के सामान और मशीनों पर हल्दी-चावल लगाएं। पूजा कलश को हल्दी लगाकर कलावे से बांधें और मंत्रोच्चारण के साथ भगवान विश्वकर्मा की आराधना करें। पति-पत्नी का एक साथ पूजा करना शुभ माना जाता है। अंत में भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है।
शुभ मुहूर्त
इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को आयोजित की जाएगी। पूजा का शुभ समय सुबह 6:07 बजे से शुरू होकर अगले दिन 18 सितंबर, रात 3:36 बजे तक रहेगा। राहुकाल में पूजा करना वर्जित है; 17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक रहेगा।
भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति
एक पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु शेषनाग पर क्षीरसागर में प्रकट हुए। उनके नाभिकमल से चतुर्मुख ब्रह्मा का जन्म हुआ। ब्रह्मा के पुत्र धर्म और धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे, जो शिल्पशास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। वास्तुदेव की पत्नी अंगिरसी से भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ। वे अपने पिता की तरह वास्तुकला और शिल्पकला में अद्वितीय आचार्य बने।
मान्यता है कि रावण की लंका, कृष्ण की द्वारका, पांडवों का इंद्रप्रस्थ, इंद्र का वज्र, शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड — सभी का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था। इसलिए उन्हें सृजन के देवता और सम्पूर्ण जगत के महान वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है।