बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूएपीए की संवैधानिकता को बरकरार रखा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूएपीए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुरूप है और याचिकाकर्ता के तर्कों में कोई ठोस आधार नहीं है। अनिल बाबूराव भेले द्वारा दायर इस याचिका में यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे के तर्क और इसके प्रभाव।
Jul 17, 2025, 18:05 IST
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यूएपीए की वैधता पर हाईकोर्ट का निर्णय
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़े गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुरूप है और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों में कोई ठोस आधार नहीं है। यह याचिका अनिल बाबूराव भेले द्वारा दायर की गई थी, जिन्हें 2020 में एल्गार परिषद मामले के संबंध में नोटिस जारी किया गया था। भेले ने अपनी याचिका में यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह से संबंधित) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश अंबेडकर ने अदालत में भेले का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि यूएपीए का दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया जा रहा है। केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संदेश पाटिल और अधिवक्ता चिंतन शाह ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क किया कि भेले केवल एक गवाह के रूप में बुलाए गए थे, इसलिए उनके पास कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि यूएपीए को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल चुकी है और इसे वैध रूप से अधिसूचित किया गया है, जिससे यह एक वैध कानून बन जाता है।
न्यायमूर्ति एएस गडकरी और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने यूएपीए को पूरी तरह से संवैधानिक घोषित किया। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलों में कोई ठोस आधार नहीं है। निर्णय सुनाते हुए, न्यायालय ने कहा कि यूएपीए संविधान के अनुरूप है। इस प्रकार, याचिका में उठाई गई चुनौती को खारिज कर दिया गया है।