बॉम्बे हाईकोर्ट ने कुपोषण पर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की
बच्चों की मौतों में वृद्धि पर चिंता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अमरावती जिले के मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण के चलते बच्चों की मौतों में बढ़ोतरी को लेकर महाराष्ट्र सरकार की कड़ी निंदा की है। अदालत ने इस स्थिति को गंभीर बताते हुए राज्य सरकार की प्रतिक्रिया को लापरवाह और असंवेदनशील करार दिया। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की खंडपीठ ने कुपोषण संकट से संबंधित जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ ने बताया कि जून से नवंबर 2025 के बीच, छह महीने से कम उम्र के 65 बच्चों की कुपोषण के कारण मृत्यु हो गई, जिसे राज्य के लिए अत्यंत शर्मनाक बताया गया।
सरकार की निष्क्रियता पर सवाल
अदालत ने राज्य सरकार की बार-बार की गई निष्क्रियता का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारी विभागों को 2006 से न्यायपालिका से आदेश मिल रहे हैं, लेकिन वे ठोस कदम उठाने में असफल रहे हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि जबकि आधिकारिक दस्तावेज़ अक्सर सकारात्मक तस्वीर पेश करते हैं, वास्तविकता कुछ और ही है। यह दर्शाता है कि सरकार इस गंभीर मुद्दे को लेकर कितनी गंभीर नहीं है।
मानवता का मामला
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल आंकड़ों का नहीं है, बल्कि जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार से जुड़ा है। न्यायाधीशों ने कहा, "यह आंकड़ों का मामला नहीं है - यह मानवीय अस्तित्व और करुणा का प्रश्न है।" उन्होंने यह भी पूछा कि वर्षों से न्यायिक चेतावनियों के बावजूद कुपोषण से संबंधित मौतें क्यों जारी हैं।
वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया गया
अदालत ने एक सख्त निर्देश जारी करते हुए लोक स्वास्थ्य, आदिवासी विकास, महिला एवं बाल कल्याण और वित्त विभागों के प्रमुख सचिवों को 24 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया। इन चारों विभागों को कुपोषण से निपटने और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया है।
