बैंक लोन के गारंटर की जिम्मेदारियाँ और कानूनी पहलू

बैंक से लोन लेते समय गारंटर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह जानना आवश्यक है कि गारंटर की कानूनी जिम्मेदारियाँ क्या हैं और डिफ़ॉल्ट की स्थिति में उसे क्या कदम उठाने चाहिए। इस लेख में गारंटर की जिम्मेदारियों, कानूनी पहलुओं और डिफ़ॉल्ट होने पर उठाए जाने वाले कदमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
 | 
बैंक लोन के गारंटर की जिम्मेदारियाँ और कानूनी पहलू

गारंटर की भूमिका और जिम्मेदारियाँ


जब कोई व्यक्ति बैंक से ऋण लेता है, तो अक्सर बैंक गारंटर की आवश्यकता होती है। गारंटर वह व्यक्ति होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि ऋण समय पर चुकाया जाएगा। सामान्यतः, गारंटर से केवल पहचान पत्र और हस्ताक्षर की मांग की जाती है, लेकिन इसके पीछे उसकी जिम्मेदारियाँ काफी महत्वपूर्ण होती हैं।


गारंटर की कानूनी ज़िम्मेदारी

भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के सेक्शन 126 के अनुसार, यदि ऋण लेने वाला व्यक्ति समय पर या पूरी राशि चुकाने में असमर्थ होता है, तो गारंटर को वह राशि चुकानी पड़ती है। इसका अर्थ है कि गारंटर की भूमिका केवल औपचारिक नहीं होती, बल्कि वह ऋण की पूरी जिम्मेदारी लेता है और डिफ़ॉल्ट की स्थिति में बैंक उसकी ही रिकवरी कर सकता है।


फाइनेंसियल और नॉन-फाइनेंसियल गारंटर

वास्तव में, कोई कानूनी वर्गीकरण नहीं है जो यह कहता हो कि गारंटर केवल 'नॉन-फाइनेंसियल' हो और उसे ऋण चुकाने की आवश्यकता न पड़े। गारंटर, जो लिखित रूप में गारंटी देता है, उसे ऋण चुकाने की जिम्मेदारी होती है।


लोन डिफ़ॉल्ट होने पर गारंटर पर प्रभाव


  • गैर-भुगतान की रिकवरी: बैंक गारंटर के खिलाफ रिकवरी प्रक्रिया शुरू करता है।

  • क्रेडिट रिपोर्ट पर प्रभाव: गारंटी देने वाले की क्रेडिट रिपोर्ट पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे भविष्य में ऋण लेना कठिन हो सकता है।

  • कानूनी कार्रवाई: यदि ऋण डिफ़ॉल्ट होता है और गारंटर भुगतान नहीं करता, तो बैंक उसके खिलाफ कोर्ट में मुकदमा कर सकती है।


लोन डिफ़ॉल्ट होने पर गारंटर को क्या करना चाहिए?


  1. लोन लेने वाले से संवाद करें: पहले उस व्यक्ति से बात करें कि वह अपना ऋण चुकाए।

  2. लोन अनुबंध की जांच करें: लोन के दस्तावेज़ देखें जिनमें आपकी गारंटी की भूमिका और दायित्व स्पष्ट होंगे।

  3. कानूनी सहायता लें: यदि वह व्यक्ति ऋण नहीं चुकाता, तो आप उसके खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज करा सकते हैं।

  4. IPC की धारा 420 के तहत कार्रवाई: धोखाधड़ी (Section 420) के अंतर्गत आरोपी को सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।


निष्कर्ष

गारंटी देने से पहले पूरी तरह सोच-विचार कर समझदारी से कदम उठाएं क्योंकि गारंटर बनने के बाद आपकी वित्तीय जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। यदि ऋण चुकाने में डिफ़ॉल्ट होता है तो गारंटर को भुगतान करना पड़ता है और बैंक पूरी रिकवरी उससे ही करता है। इसलिए गारंटर बनने से पहले कानूनी और वित्तीय परामर्श लेना अत्यंत जरूरी है।