बेटियों के संपत्ति अधिकार: 2005 के बाद के बदलाव

इस लेख में हम बेटियों के संपत्ति अधिकारों में 2005 के बाद आए महत्वपूर्ण बदलावों पर चर्चा करेंगे। जानें कि कैसे नाती-नातिनों को भी संपत्ति में अधिकार मिल सकते हैं और विवाह के बाद बेटियों की स्थिति क्या होती है। यह जानकारी आपको संपत्ति के अधिकारों को समझने में मदद करेगी।
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बेटियों के संपत्ति अधिकार: 2005 के बाद के बदलाव

बेटियों के संपत्ति अधिकारों में नया प्रावधान

आपने सुना होगा कि एक व्यक्ति के संतानें उनकी संपत्ति में अधिकार रखती हैं, लेकिन अब एक नया प्रावधान आया है। विशेष परिस्थितियों में, बेटियों के बच्चों, यानी नाती-नातिनों को भी नाना-नानी की संपत्ति में अधिकार मिल सकता है। इस लेख में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


2005 से पहले बेटियों के संपत्ति अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, जो हिंदुओं, जैनियों, सिखों और बौद्धों पर लागू होता है, एचयूएफ की अवधारणा को मान्यता देता है। इस अधिनियम के तहत, परिवार के सदस्यों को सदस्य और सहदायिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि, 2005 से पहले, बेटियों को सहदायिक का दर्जा नहीं दिया गया था।


2005 के बाद संपत्ति में बेटियों का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 में 2005 में संशोधन किया गया, जिससे बेटियों को बेटों के समान अधिकार मिले। इस संशोधन के बाद, बेटियों को एचयूएफ संपत्ति में सहदायिकी अधिकार प्राप्त हुए। यह संशोधन 9 सितंबर, 2005 से प्रभावी हुआ।


विवाहित बेटियों के अधिकार

शादी के बाद, बेटियां अपने माता-पिता के एचयूएफ की सदस्य नहीं रह जातीं, लेकिन सहदायिक बनी रहती हैं। यदि वह अपने पिता के एचयूएफ की सबसे बड़ी कोपार्सनर हैं, तो उन्हें संपत्ति के विभाजन का अधिकार है। यदि विवाहित बेटी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके बच्चे उन शेयरों के हकदार होते हैं जो उसे मिलते।


वसीयत और उपहार

एक बेटी अपने जीवनकाल में एचयूएफ संपत्ति में अपना हिस्सा उपहार में नहीं दे सकती, लेकिन वह वसीयत के माध्यम से ऐसा कर सकती है। यदि वह बिना वसीयत के मर जाती है, तो उसका हिस्सा उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मिलेगा।