बीजिंग के प्रदूषण नियंत्रण के उपाय: भारत के लिए सीखने की बातें

बीजिंग ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, जिससे भारत को कई महत्वपूर्ण सबक मिल सकते हैं। चीन ने सख्त नियमों और योजनाओं के माध्यम से प्रदूषण में कमी की है, जबकि भारत में ऐसे उपायों की आवश्यकता है। जानें कैसे बीजिंग ने अपने प्रदूषण को कम किया और भारत को क्या सीखने की जरूरत है।
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बीजिंग के प्रदूषण नियंत्रण के उपाय: भारत के लिए सीखने की बातें

बीजिंग का प्रदूषण नियंत्रण का सफर

एक समय में दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहों में से एक बीजिंग अब वायु प्रदूषण पर शोध में एक उदाहरण बन गया है। चीन ने यह परिवर्तन कैसे किया और भारत इससे क्या सीख सकता है, इस पर चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच वायु प्रदूषण की समस्या चीन और भारत दोनों के लिए समान रही है। लेकिन पिछले दस वर्षों में चीन ने जिस दृढ़ता से कदम उठाए, उसके परिणाम स्पष्ट हैं। आंकड़े खुद बयां करते हैं कि 2013 में बीजिंग में PM 2.5 का वार्षिक औसत 101.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो 2024 में घटकर 30.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गया।


परिवहन और उद्योग में सुधार

यू जिंग ने बताया कि इस सुधार के पीछे परिवहन और उद्योग के क्षेत्र में ठोस कदम उठाए गए। चीन ने अत्यधिक सख्त उत्सर्जन मानक लागू किए, जैसे 'चाइना 6NI', जो यूरो-6 के समकक्ष है। इसके तहत पुराने और अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को धीरे-धीरे सड़कों से हटाया गया। निजी वाहनों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए लाइसेंस प्लेट लॉटरी, ऑड-ईवन और सप्ताह के दिनों के आधार पर ड्राइविंग नियम लागू किए गए। इसके साथ ही, चीन ने दुनिया के सबसे बड़े मेट्रो और बस नेटवर्क का निर्माण किया और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को तेजी से बढ़ावा दिया।


औद्योगिक प्रदूषण पर सख्त कदम

उद्योगों के मामले में भी कदम और कठोर थे। 3,000 से अधिक भारी उद्योगों को बंद या शहर से बाहर स्थानांतरित किया गया। चीन की प्रमुख स्टील कंपनियों में से एक शौगांग को हटाने से वायु में कणों की मात्रा में 20% तक कमी आई। खाली हुई औद्योगिक ज़मीनों को पार्क, व्यावसायिक केंद्र और सांस्कृतिक हब में परिवर्तित किया गया। शौगांग का पुराना परिसर 2022 के विंटर ओलंपिक्स का स्थल बना।


भारत के लिए सीख

भारत के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि ऐसे उपायों पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन अंतर केवल पैमाने और राजनीतिक इच्छाशक्ति का है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनूमिता रॉय चौधरी के अनुसार, चीन में कार्रवाई केवल बीजिंग तक सीमित नहीं रही, बल्कि 26 शहरों में एक साथ हुई। वहीं, एनवायरोकैटेलिस्ट के संस्थापक सुनील दहिया का कहना है कि भारत में BS-6 जैसे मानक मौजूद हैं, लेकिन उन्हें सख्ती से लागू करने की राजनीतिक इच्छा कमजोर रही है।


बीजिंग की कहानी: इरादों की जीत

बीजिंग की कहानी दरअसल इरादों की कहानी है। यह साबित करती है कि वायु प्रदूषण कोई भाग्य नहीं, बल्कि नीति और प्राथमिकताओं का परिणाम है। भारत में हर सर्दी प्रदूषण की समस्या आती है, लेकिन बीजिंग ने इसके मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित किया। भारत में अक्सर आजीविका और पर्यावरण के बीच बहस होती है, लेकिन बीजिंग ने दिखाया है कि सही नियोजन से दोनों को संतुलित किया जा सकता है।


वर्तमान स्थिति

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता 'बहुत खराब' श्रेणी में रही और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 358 दर्ज किया गया।