बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बाहुबलियों की भूमिका और इतिहास

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बाहुबलियों की भूमिका पर एक नजर। जानें कैसे 2000 के चुनावों में बाहुबलियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्तमान चुनाव में उनकी स्थिति क्या है। यह लेख आपको बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि और बाहुबलियों के प्रभाव के बारे में जानकारी देगा।
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बाहुबलियों की भूमिका और इतिहास

बिहार चुनाव का इतिहास और बाहुबलियों की भूमिका

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बाहुबलियों की भूमिका और इतिहास


पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने चरम पर है। इस बार भी चुनाव में बाहुबलियों की चर्चा हो रही है। कुछ बाहुबली खुद चुनावी मैदान में हैं, जबकि अन्य अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव में उतारकर अपनी राजनीतिक ताकत को प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहे हैं। आइए, हम आपको 2000 के विधानसभा चुनाव की ओर ले चलते हैं, जब बाहुबलियों के लिए यह चुनाव सबसे अनुकूल साबित हुआ था।


साल 2000 में, झारखंड भी बिहार का हिस्सा था। उस समय के चुनाव में कई बाहुबलियों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। उस वर्ष, 20 निर्दलीय उम्मीदवारों ने विधानसभा में प्रवेश किया। लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर केवल एक पर आ गई, जब चकाई विधानसभा सीट से सुमित सिंह ही एकमात्र निर्दलीय विधायक बने। अब, 2025 में, सुमित सिंह जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।


2020 के चुनाव में जिन निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, उनमें वीरेंद्र प्रसाद, राजन तिवारी, रवींद्र नाथ मिश्रा, मनोरंजन सिंह, जनार्दन सिंह सीग्रीवाल, विजय शुक्ल, दिनेश प्रसाद, उमाधर पीडी सिंह, बीमा भारती, बिजय कुमार मंडल, हिमराज सिंह, नरेंद्र सिंह, रघुनाथ प्रसाद शर्मा, सूरज सिंह उर्फ सूरजभान सिंह, ददन सिंह, जगदीश शर्मा, अरुणा देवी, आदित्य सिंह, माधव लाल सिंह, और समरेश सिंह शामिल थे।


इनमें से कई बाहुबली, जैसे राजन तिवारी और सूरज सिंह, चुनाव जीतने के दौरान जेल में थे। उस समय बिहार विधानसभा में 324 सदस्य थे। 2020 के चुनाव में समता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें समता पार्टी को 34 और बीजेपी को 67 सीटें मिलीं।


केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली NDA सरकार थी, जिसने पहले सरकार बनाने का दावा पेश किया। नीतीश कुमार, जो उस समय समता पार्टी के नेता थे, को 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई।


नीतीश कुमार की सरकार को बहुमत साबित करने की जिम्मेदारी बिहार बीजेपी के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र को सौंपी गई। उन्होंने चुनाव जीतने वाले 20 निर्दलीय विधायकों से संपर्क किया और 15 को नीतीश कुमार का समर्थन देने के लिए राजी किया। 10 मार्च को नीतीश कुमार विधानसभा में बहुमत साबित करने पहुंचे, जहां कई बाहुबलियों ने उनका समर्थन किया।


हालांकि, एक अन्य बाहुबली नेता ने कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के विधायकों को कैद में रखा, जिससे नीतीश कुमार बहुमत साबित नहीं कर पाए। अंततः नीतीश कुमार ने सरकार चलाने से मना कर दिया और 10 मार्च 2000 को केवल 7 दिनों में सरकार का अंत हो गया।