बिरसा मुंडा: आदिवासी गौरव और उनके संघर्ष की कहानी

बिरसा मुंडा, जो एक साधारण गरीब परिवार में जन्मे, ने महज 25 वर्षों में आदिवासी समाज के लिए एक मसीहा का दर्जा प्राप्त किया। उनके संघर्ष और उलगुलान आंदोलन ने आदिवासियों को जागरूक किया और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज, उनके जन्मदिवस को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो आदिवासियों में आत्मसम्मान और सशक्तिकरण की भावना को बढ़ावा देता है। इस लेख में बिरसा मुंडा के योगदान और उनके विचारों पर चर्चा की गई है।
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बिरसा मुंडा: आदिवासी गौरव और उनके संघर्ष की कहानी

बिरसा मुंडा का अद्वितीय सफर

एक साधारण गरीब परिवार में जन्म लेना और फिर धरती के भगवान का दर्जा प्राप्त करना कोई साधारण बात नहीं है। बिरसा मुंडा ने 15 नवंबर 1875 को जन्म लेकर महज 25 वर्षों में यह अद्वितीय यात्रा तय की। जल, जमीन और जंगल से जुड़े इस जननायक ने आदिवासी समाज की दशा और दिशा को बदलने का कार्य किया।


ब्रिटिश हुकूमत की तानाशाही और औपनिवेशिक नीतियों के खिलाफ बिरसा ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और आदिवासियों को जागरूक करते हुए उलगुलान आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। भारत में जनजातियों की विविधता को देखते हुए, उत्तर से लेकर अंडमान निकोबार तक, लगभग 700 जनजातीय समुदाय निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या करीब 11 करोड़ है, जो भारतीय जनसंख्या का 8.9 प्रतिशत है।


आधुनिक जनजातीय गौरव के प्रतीक बिरसा मुंडा की गाथा आज भी न केवल आदिवासियों में, बल्कि देश के हर नागरिक में देश के प्रति समर्पण की भावना जगाती है। स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदाय के योगदान को मान्यता देते हुए, सरकार ने उनके जन्मदिवस को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।


यह पहल आदिवासियों में आत्मसम्मान और सशक्तिकरण की भावना को बढ़ावा देती है। धरती आबा के नाम से प्रसिद्ध बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजलि तभी दी जा सकती है जब हम जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के प्रति संकल्पित हों। उनके विचार न केवल प्रकृति संरक्षण का संदेश देते हैं, बल्कि आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार को भी दर्शाते हैं।


हालांकि, आधुनिकता की दौड़ में आदिवासी समुदाय अपनी संस्कृति और प्रकृति को छोड़कर एक आभासी दुनिया की ओर बढ़ रहा है। जनजाति विकास की बात करने वाले संगठन अब पद की लालसा में उलझ गए हैं। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर, जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए एकता के सूत्र में बंधकर कार्य करना आवश्यक है। तभी हम बिरसा मुंडा के सपनों को साकार कर पाएंगे और सच्ची श्रद्धांजलि के हकदार बनेंगे।


बिरसा मुंडा की छवि


लेखक की जानकारी

ओम प्रकाश मीना
अध्यापक राउमावि बिलोपा (स.मा.)