बालाजी वेफर्स में जनरल अटलांटिक का बड़ा निवेश, 2500 करोड़ में खरीदेगी 7% हिस्सेदारी
बालाजी वेफर्स में विदेशी निवेश की तैयारी
बालाजा वेफर्स की बड़ी डील
भारत के प्रसिद्ध स्नैक ब्रांड बालाजी वेफर्स में एक महत्वपूर्ण विदेशी निवेश की संभावना है। अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक लगभग ₹2,500 करोड़ में 7% हिस्सेदारी खरीदने के अंतिम चरण में है। इस डील के बाद बालाजी वेफर्स की कुल वैल्यू लगभग 35,000 करोड़ रुपए (लगभग $4 बिलियन) आंकी जा रही है, जो भारतीय स्नैक मार्केट में एक महत्वपूर्ण कदम है।
डील की प्रक्रिया अंतिम चरण में
बालाजी वेफर्स के संस्थापक और प्रबंध निदेशक चंदू विरानी ने बताया कि जनरल अटलांटिक के साथ बातचीत लगभग पूरी हो चुकी है और अंतिम समझौते की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने कहा कि हमारी तरफ से डील तय है। GA की टीम वर्तमान में दस्तावेजों की समीक्षा कर रही है। विरानी ने यह भी बताया कि कंपनी की नई पीढ़ी रणनीतिक पूंजी लाकर व्यवसाय का विस्तार करना चाहती है, इसलिए यह हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया गया।
जनरल अटलांटिक ने केदारा को पीछे छोड़ा
इससे पहले बालाजी वेफर्स केदारा कैपिटल, TPG, टेमासेक और जनरल मिल्स जैसे निवेशकों से बातचीत कर रही थी। हालांकि, जनरल अटलांटिक ने 7-10% अधिक वैल्यूएशन का प्रस्ताव देकर डील अपने नाम कर ली।
एक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी इस समय और हिस्सेदारी बेचने का इरादा नहीं रखती, बल्कि भविष्य में IPO (Initial Public Offering) लाने पर विचार कर रही है, जिससे आम निवेशकों को भी इसमें भाग लेने का अवसर मिल सकता है।
गुजरात के थिएटर से शुरू हुई यात्रा
बालाजी वेफर्स की कहानी प्रेरणादायक है। इसकी शुरुआत 1982 में राजकोट के एक मूवी थिएटर से हुई थी, जहां चंदू विरानी और उनके भाइयों ने सैंडविच और स्नैक्स बेचना शुरू किया। आज कंपनी की सालाना बिक्री ₹6,500 करोड़ है और इसका नेट प्रॉफिट लगभग ₹1,000 करोड़ है।
गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में बालाजी का दबदबा है। इन राज्यों में कंपनी के पास स्नैक मार्केट की लगभग 65% हिस्सेदारी है। सीमित भौगोलिक मौजूदगी के बावजूद, बालाजी, हल्दीराम और पेप्सिको के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा स्नैक ब्रांड है।
कम लागत और उच्च गुणवत्ता का मॉडल
बालाजी वेफर्स का व्यवसाय मॉडल अत्यंत प्रभावी और कम लागत वाला है। कंपनी अपने राजस्व का केवल 4% विज्ञापन पर खर्च करती है, जबकि उद्योग में यह औसतन 8-12% होता है। विज्ञापन पर कम खर्च का लाभ यह है कि कंपनी अपने उत्पादन और गुणवत्ता पर अधिक निवेश कर पाई है, जिससे वह कम कीमत पर बेहतरीन गुणवत्ता प्रदान कर सकी है।
कंपनी के पास वर्तमान में चार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स हैं और वह इन्हें दोगुना करने की योजना बना रही है, ताकि अपने उत्पादों को देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचा सके।
रीजनल स्नैक ब्रांड्स में बढ़ती रुचि
जनरल अटलांटिक का यह निवेश भारत के रीजनल स्नैक ब्रांड्स में बढ़ती रुचि को दर्शाता है। इन ब्रांड्स ने अपने स्थानीय स्वाद, कम कीमत और तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स चैनल के माध्यम से PepsiCo और ITC जैसे बड़े खिलाड़ियों को चुनौती दी है।
हाल ही में हल्दीराम ने भी सिंगापुर की टेमासेक, अल्फा वेव ग्लोबल और IHC को अपनी 10% हिस्सेदारी $10 बिलियन से अधिक वैल्यूएशन पर बेची थी, जो भारत के खाद्य क्षेत्र की सबसे बड़ी प्राइवेट इक्विटी डील मानी गई।
