बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता: भारत के प्रति बढ़ती शत्रुता और अल्पसंख्यकों की स्थिति
बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति
बांग्लादेश आज राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक तनाव और वैचारिक ध्रुवीकरण के गंभीर दौर से गुजर रहा है। शासन की कमजोरी, आर्थिक दबाव और धार्मिक कट्टरवाद ने देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी है। यह सवाल उठता है कि जिस भारत ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण बलिदान दिए, आज उसी भारत के प्रति बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में शत्रुता क्यों बढ़ रही है।
भारत का योगदान और बलिदान
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, भारत ने बांग्लादेश के नागरिकों को शरण, प्रशिक्षण, कूटनीतिक समर्थन और सैन्य सहायता प्रदान की। लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत ने आश्रय दिया, जिससे देश पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा। भारतीय सेना के हजारों जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिसके परिणामस्वरूप 'पूर्वी पाकिस्तान' का अंत और 'बांग्लादेश' का उदय हुआ।
हिन्दू अल्पसंख्यकों की स्थिति
बांग्लादेश में हिन्दू समुदाय ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक रहा है। हाल के वर्षों में लूट, आगजनी, जबरन कब्जे और लक्षित हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। स्वतंत्रता के समय हिन्दुओं की जनसंख्या लगभग 27 प्रतिशत थी, जो अब घटकर लगभग 8 प्रतिशत रह गई है। यह गिरावट असुरक्षा की भावना, पलायन और सामाजिक तिरस्कार का परिणाम है।
कट्टरवाद का बढ़ता प्रभाव
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कुछ कट्टरपंथी संगठन धार्मिक पहचान को राजनीतिक शक्ति में बदलने का प्रयास कर रहे हैं। यह कट्टरवाद न केवल अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है, बल्कि बांग्लादेश के उदार और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए भी चुनौती है।
दक्षिण एशिया की सुरक्षा पर प्रभाव
बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरवाद केवल एक आंतरिक समस्या नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा पर पड़ता है। यह सीमा-पार उग्रवाद को बढ़ावा दे सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है।
भारतीय सरकार की संभावित भूमिका
भारत बांग्लादेश की आंतरिक अराजकता पर मूकदर्शक नहीं रह सकता। भारत को कूटनीतिक दबाव डालकर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान के लिए प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा और विकास सहयोग के माध्यम से कट्टरवाद की जड़ों को कमजोर करना आवश्यक है।
समाधान की दिशा
बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति केवल एक राष्ट्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक चेतावनी है। समाधान टकराव में नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों, समावेशी राजनीति और क्षेत्रीय सहयोग में निहित है।
