प्लेन की सुरक्षा के लिए चिकन गन टेस्ट: जानें इसकी प्रक्रिया और महत्व

प्लेन टेक-ऑफ और लैंडिंग के दौरान बर्ड स्ट्राइक के खतरे को कम करने के लिए चिकन गन टेस्ट एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस परीक्षण में असली मुर्गों का उपयोग किया जाता है ताकि विमान के इंजन और विंडशील्ड की मजबूती का आकलन किया जा सके। जानें इस प्रक्रिया के पीछे का विज्ञान और इसके महत्व के बारे में।
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प्लेन की सुरक्षा के लिए चिकन गन टेस्ट: जानें इसकी प्रक्रिया और महत्व

प्लेन टेक-ऑफ और लैंडिंग के दौरान बर्ड स्ट्राइक का खतरा


जब विमान उड़ान भरता है या उतरता है, तो यह जमीन के बहुत करीब होता है, जिससे पक्षियों से टकराने का जोखिम बढ़ जाता है। हर साल लाखों पक्षी विमानों से टकराते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा उत्पन्न होता है। इस खतरे को कम करने के लिए एक विशेष परीक्षण किया जाता है, जिसे बर्ड स्ट्राइक टेस्ट कहा जाता है।


चिकन गन टेस्ट की प्रक्रिया

इस परीक्षण में विमान के विंडशील्ड, पंखों और इंजन की मजबूती का आकलन करने के लिए एक विशेष उपकरण का उपयोग किया जाता है, जिसे चिकन गन कहा जाता है। यह एक कंप्रेस्ड एयर कैनन है, जो असली या मृत मुर्गों को 300 से 500 किमी प्रति घंटे की गति से विमान के हिस्सों पर फेंकता है।


मुर्गे का चयन क्यों?


  • मुर्गा आकार और वजन के मामले में उन पक्षियों के समान होता है जो विमान से टकरा सकते हैं।

  • जिंदा मुर्गा जब इंजन में फेंका जाता है, तो वह बचने के लिए फड़फड़ाता है, जिससे वास्तविक दबाव का अनुभव होता है।

  • जिंदा मुर्गे का परीक्षण अधिक प्रभावी होता है, क्योंकि यह वास्तविक परिस्थितियों में प्रतिक्रिया दिखाता है।


इस परीक्षण का उद्देश्य


  • प्लेन के इंजन की क्षमता का आकलन करना कि वह पक्षी के टकराने की स्थिति में कितनी प्रभावी ढंग से काम करेगा।

  • विंडशील्ड पर मुर्गा फेंककर उसकी मजबूती और दरारों का मूल्यांकन करना।

  • इंजन को इस स्थिति में परीक्षण करना कि यदि पक्षी अंदर फंस जाए, तो भी इंजन 75% ताकत से 2 मिनट तक चल सके।


टेस्ट प्रक्रिया


  • लैब में चिकन गन का उपयोग करके मुर्गे को विमान के हिस्सों पर दागा जाता है।

  • हाई-स्पीड कैमरे से टकराव के क्षणों को रिकॉर्ड किया जाता है।

  • नुकसान का आकलन किया जाता है और विमान की उड़ान सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।

  • यदि परीक्षण सफल होता है, तभी विमान को उड़ान भरने की अनुमति दी जाती है।


रोचक तथ्य


  • यह परीक्षण कई दशकों से किया जा रहा है, और इसका पहला प्रयोग 1950 के दशक में हुआ था।

  • हालांकि आजकल कई जगह नकली मुर्गों का उपयोग होता है, असली मुर्गे का परीक्षण अधिक विश्वसनीय माना जाता है।

  • परीक्षण के दौरान जो मुर्गे टूटते हैं, उनका सेवन नहीं किया जाता।


निष्कर्ष

यह परीक्षण विमानन सुरक्षा को वैश्विक मानकों पर बनाए रखने में मदद करता है और बर्ड स्ट्राइक से होने वाले नुकसान को कम करता है।