प्रोफेसर जयंत नार्लीकर: विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान
प्रोफेसर जयंत नार्लीकर, एक प्रतिष्ठित एस्ट्रोफिजिसिस्ट, ने विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उन्हें 26 वर्ष की आयु में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके शोध ने बिग बैंग थ्योरी को चुनौती दी और उन्होंने वायुमंडल से बैक्टीरिया की खोज की। जानें उनके जीवन, शिक्षा और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों के बारे में।
| Dec 26, 2025, 13:58 IST
प्रोफेसर जयंत नार्लीकर का परिचय
कौन थे प्रोफेसर जयंत नार्लीकर
हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में एक समारोह में राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार प्रदान किए, जिसमें प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर का नाम भी शामिल था। उन्हें मरणोपरांत विज्ञान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रोफेसर नार्लीकर का नाम विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम है, और उन्होंने देश में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 26 वर्ष की आयु में उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया था। उनके तीनों बेटियां भी विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
निधन और पारिवारिक जीवन
20 मई 2025 को निधन
प्रोफेसर जयंत नार्लीकर का निधन 20 मई 2025 को पुणे में 87 वर्ष की आयु में हुआ। उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटियां गीता, गिरिजा और लीलावती शामिल हैं।
शिक्षा और परिवार
पिता और पत्नी गणितज्ञ, मां संस्कृत की विद्वान
प्रोफेसर नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। उनके पिता विष्णु नार्लीकर BHU में गणित के प्रोफेसर थे, जबकि उनकी मां सुमति नार्लीकर संस्कृत की विद्वान थीं। जयंत ने BHU से ग्रेजुएशन किया और उनकी शादी मंगला राजवाड़े से हुई, जो गणित में PhD थीं।
शैक्षणिक उपलब्धियाँ
BHU से B.Sc, कैम्ब्रिज से कई डिग्रियां
प्रोफेसर नार्लीकर ने 1957 में BHU से B.Sc की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई की, जहां उन्होंने BA, PhD, MA और 1976 में डॉक्टर ऑफ साइंस (ScD) की डिग्री हासिल की।
सम्मान और योगदान
1965 में पद्म भूषण, सबसे कम उम्र में सम्मान पाने वाले बने
कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान ही प्रोफेसर नार्लीकर ने एस्ट्रोफिजिक्स में अपने कार्यों के लिए पहचान बनाई। 1965 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जिससे वह सबसे कम उम्र के भारतीय बने।
TIFR में शामिल होने के लिए भारत लौटे, IUCAA की स्थापना
1972 में प्रोफेसर नार्लीकर भारत लौटे और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में शामिल हुए। 1988 में उन्होंने इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) की स्थापना की और 2023 तक इसके निदेशक रहे।
वैज्ञानिक अनुसंधान
बिग बैंग थ्योरी की चुनौती, वायुमंडल से बैक्टीरिया की खोज
प्रोफेसर नार्लीकर ने वैकल्पिक ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा और बिग बैंग थ्योरी को चुनौती दी। उन्होंने 1999 से 2003 तक ऊपरी वायुमंडल से बैक्टीरिया के अनुसंधान का नेतृत्व किया, जिससे पृथ्वी पर बैक्टीरिया की बौछार का संकेत मिला।
विज्ञान को लोकप्रिय बनाने का प्रयास
विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए किया काम
प्रोफेसर नार्लीकर ने विज्ञान को आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए कई किताबें, लेख और कार्यक्रम तैयार किए। उन्हें 1996 में यूनेस्को द्वारा कलिंग पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
