प्रशांत किशोर की राजनीतिक चुनौती: बिहार चुनावों में नया मोड़

प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा
नई दिल्ली। प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत ऐसे समय में हुई है जब परिस्थितियाँ अरविंद केजरीवाल की शुरुआती राजनीति से काफी मिलती-जुलती हैं, लेकिन कई पहलुओं में भिन्नता भी है। बिहार और दिल्ली की राजनीतिक संस्कृति में बड़ा अंतर है।
दिल्ली में पूर्वांचल और पंजाब के लोगों का प्रभाव है, जबकि बिहार की राजनीति जाति के आधार पर संचालित होती है। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में अपनी जगह बना ली, लेकिन प्रशांत किशोर को अपनी राजनीतिक राह में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
हाल ही में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने बताया कि प्रशांत किशोर का सवर्ण होना उनके लिए एक बाधा बन रहा है। यदि वे ओबीसी समुदाय से होते, तो उनकी सफलता की संभावनाएँ अधिक होतीं। कुछ विशेषज्ञ उनकी राजनीति को पुष्पम प्रिया चौधरी की महत्वाकांक्षाओं से जोड़ते हैं, जिन्होंने 2020 के चुनावों में अपनी पार्टी टीपीपी के तहत भाग लिया था, लेकिन असफल रहीं।
धरना और गिरफ्तारी
प्रशांत किशोर ने हाल ही में कंबल विवाद के बाद धरना देने का निर्णय लिया। गिरफ्तारी के बाद, उन्होंने जमानत की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया और जेल जाने का विकल्प चुना। यह उनके राजनीतिक विरोधियों के लिए एक बड़ा खतरा बन गया।
पटना पुलिस ने उन्हें गांधी मैदान में धरना देने के दौरान गिरफ्तार किया। लगभग 6-7 घंटे एंबुलेंस में घूमने के बाद, उन्हें पटना सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
हालांकि, प्रशांत किशोर ने सशर्त जमानत लेने से मना कर दिया, जिसके बाद उन्हें बेऊर जेल भेजा गया। लेकिन जेल भेजे जाने से पहले ही अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया।
नीतीश कुमार को चुनौती
जमानत पर रिहा होते ही प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार और बीजेपी नेताओं को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी के नेता छात्रों पर हुए लाठीचार्ज पर चुप हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो मामला गांधी मैदान से शुरू हुआ था, उसे वहीं समाप्त किया जाएगा।
प्रशांत किशोर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह मुद्दा उनका व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह युवाओं की आवाज है। उन्होंने तेजस्वी यादव और राहुल गांधी को भी चुनौती दी कि वे बच्चों के भविष्य के लिए सड़क पर उतरें।
भविष्य की संभावनाएँ
प्रशांत किशोर का जेल जाने का निर्णय उनके राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है। वे बिहार की राजनीति में एक नई लहर लाने का प्रयास कर रहे हैं, जहाँ पुराने दिग्गजों की पारी समाप्त हो चुकी है।
बिहार की मौजूदा राजनीति में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे चेहरे ही प्रमुख हैं। बीजेपी ने पिछले 10 वर्षों में कोई नया चेहरा नहीं पेश किया है।
प्रशांत किशोर के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। पटना में उन्हें रहने के लिए घर और वैनिटी वैन मुहैया कराई गई है। यह दर्शाता है कि बिहार के लोग पुरानी राजनीति से आगे बढ़कर कुछ नया देखने के इच्छुक हैं।