प्रधानमंत्री मोदी की कोयम्बटूर यात्रा: तमिलनाडु की राजनीति में नया मोड़

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोयम्बटूर यात्रा ने तमिलनाडु की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा स्वागत न करने से लेकर भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच नए समीकरणों तक, यह यात्रा आगामी विधानसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण संकेत देती है। मोदी का जोर प्राकृतिक खेती और ग्रामीण मतदाताओं पर है, जो द्रमुक के लिए चुनौती बन सकता है। जानें इस यात्रा के राजनीतिक महत्व और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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प्रधानमंत्री मोदी की कोयम्बटूर यात्रा: तमिलनाडु की राजनीति में नया मोड़

कोयम्बटूर यात्रा का राजनीतिक महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोयम्बटूर यात्रा ने तमिलनाडु की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है, खासकर जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री का स्वागत न करना और एक मंत्री को भेजना इस बात का संकेत था कि यह यात्रा केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेशों से भरी हुई है। कोयम्बटूर में आयोजित दक्षिण भारत नेचुरल फार्मिंग समिट, पीएम-किसान की 21वीं किस्त का वितरण, और 'बिहार की हवा तमिलनाडु तक आ चुकी है' जैसे बयानों ने भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच नई ऊर्जा का संचार किया है। एक द्रमुक नेता की प्रधानमंत्री पर की गई 'दुष्ट' टिप्पणी ने इस यात्रा को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। यह स्पष्ट है कि आगामी विधानसभा चुनाव अब एकतरफा नहीं रहेंगे।


राजनीतिक समीकरणों में बदलाव

तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य लंबे समय से द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित रहा है, लेकिन अब समीकरण बदल चुके हैं। याद रहे कि लोकसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य में व्यापक प्रचार किया था। हालांकि उस समय एनडीए को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी, लेकिन जो सामाजिक-राजनीतिक आधार उन्होंने तैयार किया था, वही अब विधानसभा चुनावों में भाजपा और एनडीए के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। भाजपा अब अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतर रही है, जबकि अन्नाद्रमुक के पास मजबूत वोट बैंक और भाजपा के पास राष्ट्रीय नेतृत्व और संसाधन हैं।


कोयम्बटूर का सांस्कृतिक महत्व

प्रधानमंत्री ने कोयम्बटूर के राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करते हुए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। एनडीए द्वारा सी.पी. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाना राज्य के प्रति सम्मान और महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। इससे न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है, बल्कि यह तमिलनाडु के मतदाताओं को भी यह संकेत देता है कि दिल्ली अब तमिल नेतृत्व को राष्ट्रीय भूमिकाओं में प्राथमिकता दे रही है।


द्रमुक की चुनौतियाँ

DMK ने 2021 में सत्ता में लौटकर मजबूत पकड़ बनाई थी, लेकिन हाल के महीनों में उसे कई राजनीतिक झटके लगे हैं। चाहे वह परिवारवाद के आरोप हों या धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर विवाद, द्रमुक नेतृत्व इस बात को समझ रहा है कि सत्ताविरोधी लहर और प्रशासनिक कमियाँ उसे कमजोर कर रही हैं। स्टालिन का पीएम के स्वागत से दूरी बनाना उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था, लेकिन इससे भाजपा को यह कहने का मौका मिला कि द्रमुक सरकार राजनीतिक अहंकार में डूबी हुई है।


ग्रामीण मतदाताओं पर ध्यान

प्रधानमंत्री का प्राकृतिक खेती, जैविक कृषि और मिलेट्स की वैश्विक संभावनाओं पर जोर देना केवल एक कृषि कार्यक्रम नहीं था। यह संदेश सीधे तमिलनाडु के ग्रामीण मतदाताओं को लक्षित करता है, जो राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीएम-किसान की किस्त जारी करना एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत है कि एनडीए ग्रामीण कृषि वर्ग में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है।


भविष्य की संभावनाएँ

अन्नाद्रमुक और भाजपा का गठबंधन दो स्तरों पर महत्वपूर्ण है—पहला, यह द्रमुक के खिलाफ एक प्रभावी विपक्ष तैयार करता है; दूसरा, यह भाजपा को उन क्षेत्रों में प्रवेश देता है जहाँ उसकी उपस्थिति सीमित थी। लोकसभा चुनावों में भाजपा को सीटें नहीं मिलीं, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई थी। यह वृद्धि विधानसभा चुनावों में सीटों में बदल सकती है, खासकर जब अन्नाद्रमुक का कैडर और भाजपा का संगठन मिलकर काम कर रहे हों।


निष्कर्ष

प्रधानमंत्री की कोयम्बटूर यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव केवल स्थानीय मुद्दों की लड़ाई नहीं होंगे। यह चुनाव द्रमुक के शासन मॉडल बनाम मोदी के विकास और राष्ट्रीय राजनीति के मॉडल का मुकाबला बनते जा रहे हैं। एनडीए का गठबंधन, क्षेत्रीय नेताओं को राष्ट्रीय महत्व, ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति और भाजपा का बढ़ता ग्राउंड नेटवर्क, ये सभी द्रमुक के लिए खतरे की घंटी हैं।