प्रधानमंत्री मोदी का आरएसएस के शताब्दी समारोह पर विशेष लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह पर एक प्रेरणादायक लेख लिखा है। उन्होंने संघ के योगदान, स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भूमिका, और वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किए गए रोडमैप पर चर्चा की। मोदी ने आरएसएस के पांच परिवर्तनों का उल्लेख किया, जो समाज में आत्म-जागरूकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि भी दी गई है।
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प्रधानमंत्री मोदी का आरएसएस के शताब्दी समारोह पर विशेष लेख

प्रधानमंत्री का लेख और शुभकामनाएँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह के अवसर पर एक प्रेरणादायक लेख लिखा है। उन्होंने लाखों स्वयंसेवकों को शुभकामनाएँ देते हुए संघ को "शाश्वत राष्ट्रीय चेतना का पावन अवतार" बताया। मोदी ने कहा कि 1925 में विजयादशमी के दिन स्थापित आरएसएस, राष्ट्रीय जागरण की एक पुरानी परंपरा का प्रतीक है, जो हर युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए पुनः उभरती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि वर्तमान पीढ़ी को आरएसएस के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने का अवसर मिला है। अपने लेख में, उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्हें उन्होंने सभी के लिए एक प्रेरणादायक मार्गदर्शक बताया।


आरएसएस का दृष्टिकोण और योगदान

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि आरएसएस ने अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्र निर्माण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने लिखा कि संघ ने सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए सशक्त व्यक्तियों के निर्माण का मार्ग चुना। दैनिक "शाखाएँ" इस यात्रा का माध्यम बनीं, जहाँ स्वयंसेवक 'मैं' से 'हम' की ओर बढ़ना सीखते हैं। उन्होंने शाखाओं को "चरित्र निर्माण की यज्ञ वेदी" बताया, जिसने पिछले एक शताब्दी में राष्ट्र के लिए योगदान देने वाले लाखों स्वयंसेवकों को आकार दिया है।


स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस की भूमिका

अपने लेख में, प्रधानमंत्री ने बताया कि आरएसएस हमेशा "राष्ट्र प्रथम" की भावना को आगे बढ़ाता रहा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, डॉ. हेडगेवार और कई स्वयंसेवकों ने इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्रता के बाद भी, संघ ने राष्ट्र निर्माण में पूरी तरह से संलग्न रहकर कई चुनौतियों का सामना किया। मोदी ने कहा कि स्वयंसेवकों ने कभी भी कटुता को स्थान नहीं दिया, क्योंकि उनका मानना था कि समाज उनका अपना हिस्सा है।


समाज में आत्म-जागरूकता का विकास

प्रधानमंत्री मोदी ने आरएसएस की 100 साल की यात्रा में समाज के विभिन्न वर्गों में आत्म-जागरूकता और आत्म-सम्मान जगाने का श्रेय संघ को दिया। उन्होंने कहा कि संगठन ने आदिवासी परंपराओं और मूल्यों की रक्षा के लिए भी काम किया है। उन्होंने याद किया कि कैसे आरएसएस के नेताओं ने छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया। वर्तमान प्रमुख मोहन भागवत ने सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए "एक कुआँ, एक मंदिर और एक श्मशान" का दृष्टिकोण दिया है।


वर्तमान चुनौतियाँ और आरएसएस का रोडमैप

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज की चुनौतियाँ एक सदी पहले की चुनौतियों से भिन्न हैं। जैसे-जैसे भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है, उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि आरएसएस ने आज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मजबूत रोडमैप तैयार किया है। उन्होंने संघ के "पाँच परिवर्तन" - आत्म-जागरूकता, सामाजिक समरसता, परिवार जागरण, नागरिक भावना और पर्यावरण संरक्षण - का उल्लेख किया, जो स्वयंसेवकों के लिए समसामयिक मुद्दों से निपटने के मार्गदर्शक स्तंभ हैं।


परिवर्तन के महत्व पर प्रकाश

इन परिवर्तनों के महत्व को समझाते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आत्म-जागरूकता का अर्थ है गुलामी की विरासत से मुक्ति और स्वदेशी भावना को आगे बढ़ाना। सामाजिक समरसता का मतलब है वंचितों को प्राथमिकता देना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना। परिवार जागरण का उद्देश्य सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत करना है, जबकि नागरिक भावना का लक्ष्य प्रत्येक नागरिक में कर्तव्य-बोध का संचार करना है। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया।