पौष पुत्रदा एकादशी 2025: संतान सुख के लिए विशेष व्रत
पौष पुत्रदा एकादशी 2025, जो 30 दिसंबर को मनाई जाएगी, संतान सुख की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए शुभ माना जाता है जो संतान की कामना रखते हैं। शास्त्रों में इस एकादशी का महत्व और इसके फल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। जानें इस व्रत की कथा, विधि और इसके आध्यात्मिक महत्व के बारे में।
| Dec 26, 2025, 17:25 IST
पौष पुत्रदा एकादशी 2025
पुत्रदा एकादशी 2025
Santan Prapti Vrat 2025: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हर महीने आने वाली दोनों एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं, लेकिन कुछ एकादशी अपने विशेष फल के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, उनमें से एक है। वर्ष 2025 में, यह व्रत 30 दिसंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह एकादशी संतान, विशेषकर पुत्र प्राप्ति की इच्छा के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उन्हें श्रद्धा और नियमपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार की आगे की पीढ़ी बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
शास्त्रों में पुत्रदा एकादशी का उल्लेख
पद्म पुराण और भविष्य पुराण में पुत्रदा एकादशी का विस्तृत वर्णन मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी का नाम स्वयं इसके फल को प्रकट करता है। पुत्रदा का अर्थ है पुत्र प्रदान करने वाली। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतानहीन दंपत्ति को भी संतान सुख प्राप्त हो सकता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भद्रावती नगरी में राजा सुकुमार और रानी शैव्या संतानहीन थे। कई वर्षों तक दुखी रहने के बाद उन्होंने विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई। इसी कथा के आधार पर इस एकादशी को संतान प्राप्ति का विशेष व्रत माना गया है।
पुत्रदा एकादशी का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, पुत्रदा एकादशी केवल संतान प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह व्रत व्यक्ति को संयम, शुद्ध आचरण और भक्ति की ओर प्रेरित करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि संतान केवल शारीरिक प्रयास से नहीं, बल्कि पुण्य कर्म और ईश्वरीय कृपा से भी प्राप्त होती है। एकादशी व्रत इसी पुण्य संचय का माध्यम है। यह व्रत परिवार, वंश और सामाजिक संतुलन के महत्व को भी दर्शाता है। प्राचीन काल में पुत्र को वंश परंपरा, पितृ ऋण और धार्मिक कर्तव्यों से जोड़ा जाता था, इसी कारण पुत्र प्राप्ति की कामना को धर्म से जोड़ा गया।
पुत्रदा एकादशी के व्रत का फल
शास्त्रों में बताया गया है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण, पूजा और व्रत कथा का पाठ करने से संतान सुख का मार्ग प्रशस्त होता है। माना जाता है कि जिन दंपत्तियों को संतान संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा होता है, उन्हें इस व्रत से सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। इसके साथ ही यह व्रत परिवार में आपसी सद्भाव, मानसिक शांति और जीवन में स्थिरता लाता है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत पापों के प्रभाव को कम करता है और व्यक्ति के पूर्व जन्मों के दोषों के शमन में भी सहायक माना गया है।
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