पौष पुत्रदा एकादशी 2025: तुलसी पर दीपक जलाने का सही समय और नियम
पौष पुत्रदा एकादशी 2025
पौष पुत्रदा एकादशी 2025Image Credit source: AI
तुलसी दीपक का समय: 30 दिसंबर 2025 को पौष पुत्रदा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में एकादशी का दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है। यदि आप संतान सुख, धन और घर की शांति के लिए तुलसी के पास दीपक जलाना चाहते हैं, तो यहां समय और नियमों की जानकारी दी गई है।
तुलसी पर दीपक जलाने का शुभ समय
ज्योतिष और पंचांग के अनुसार, एकादशी के दिन संध्या वंदन का समय सबसे फलदायी माना जाता है।
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:31 से 05:59 तक।
- शाम की पूजा का समय: शाम 05:34 से रात 06:56 तक।
- सूर्यास्त के तुरंत बाद दीपक जलाना सबसे उत्तम रहेगा।
तुलसी पूजन के नियम
एकादशी के दिन तुलसी पूजन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा पुण्य की जगह दोष लग सकता है।
जल न दें
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन माता तुलसी भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन तुलसी के पौधे में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। जल देने से उनका व्रत खंडित माना जाता है।
तुलसी के पत्ते न तोड़ें
एकादशी तिथि पर तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित है। यदि आपको भोग के लिए पत्तों की आवश्यकता है, तो उन्हें एक दिन पहले (दशमी को) तोड़कर रख लेना चाहिए था। यदि नहीं तोड़े हैं, तो जमीन पर गिरे हुए पत्तों का उपयोग करें।
दीपक का प्रकार
शाम के समय तुलसी के पास हमेशा शुद्ध देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। तेल के दीपक की तुलना में घी का दीपक अधिक सात्विक और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
परिक्रमा का नियम
दीपक जलाने के बाद तुलसी माता की 7 बार परिक्रमा करना अत्यंत शुभ होता है। यदि स्थान की कमी है, तो अपने स्थान पर ही गोल घूमकर परिक्रमा पूरी करें।
संतान सुख और समृद्धि के उपाय
मंत्र जाप: दीपक जलाते समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ श्री तुलस्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
लाल धागा (कलावा): आज के दिन तुलसी के गमले या पौधे पर एक छोटा सा लाल धागा बांधना आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक हो सकता है।
मुख्य द्वार पर दीप: तुलसी के साथ-साथ घर के मुख्य द्वार पर भी घी का दीपक जलाएं, इससे दरिद्रता दूर होती है।
ये भी पढ़ें: आखिर भगवान को भोग क्यों लगाया जाता है? जानें इसके पीछे की शास्त्रीय परंपरा
