पौष अमावस्या 2025: पितरों की पूजा और आरती का महत्व

पौष अमावस्या 2025 का दिन विशेष धार्मिक महत्व रखता है। इस दिन भगवान सूर्य और पितरों की पूजा की जाती है। पितरों का तर्पण और आरती का विधान इस दिन का मुख्य आकर्षण है। जानें इस दिन की विशेष परंपराओं और आरती के महत्व के बारे में।
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पौष अमावस्या का महत्व

पौष अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह भगवान सूर्य और पितरों को समर्पित है। इस दिन स्नान और दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे भगवान विष्णु और शिव की पूजा के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। अमावस्या का दिन पितरों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।


पितरों का तर्पण

इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है। सूर्यास्त के बाद, घर के दक्षिण कोने में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं। पूजा के दौरान भगवान विष्णु और शिव की आरती भी की जाती है, जिससे देवताओं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।


भगवान विष्णु की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।


भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥


ॐ जय जगदीश हरे।


जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।


स्वामी दुःख विनसे मन का।


सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥


ॐ जय जगदीश हरे।


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।


स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।


तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।


स्वामी तुम अन्तर्यामी।


पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।


स्वामी तुम पालन-कर्ता।


मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥


ॐ जय जगदीश हरे।


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।


स्वामी सबके प्राणपति।


किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥


ॐ जय जगदीश हरे।


दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।


स्वामी तुम ठाकुर मेरे।


अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥


ॐ जय जगदीश हरे।


विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।


स्वामी पाप हरो देवा।


श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥


ॐ जय जगदीश हरे।


श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।


स्वामी जो कोई नर गावे।


कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥


ॐ जय जगदीश हरे।


शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।


ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।


हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।


त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।


चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।


सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी ।


सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।


प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।


कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा॥


पितृ देव की आरती

जय जय पितर जी महाराज,


मैं शरण पड़ा तुम्हारी,


शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,


रख लेना लाज हमारी,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


आप ही रक्षक आप ही दाता,


आप ही खेवनहारे,


मैं मूरख हूं कछु नहिं जानू,


आप ही हो रखवारे,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी,


करने मेरी रखवारी,


हम सब जन हैं शरण आपकी,


है ये अरज गुजारी,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


देश और परदेश सब जगह,


आप ही करो सहाई,


काम पड़े पर नाम आपके,


लगे बहुत सुखदाई,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


भक्त सभी हैं शरण आपकी,


अपने सहित परिवार,


रक्षा करो आप ही सबकी,


रहूं मैं बारम्बार,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


जय जय पितर जी महाराज,


मैं शरण पड़ा हू तुम्हारी,


शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,


रखियो लाज हमारी,


जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।


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