पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु: जहर देने की साज़िश और उसके परिणाम

पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु पर विभिन्न दृष्टिकोण

इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बारे में इतिहास में कई मत हैं। कुछ इतिहासकार और सुन्नी समुदाय का मानना है कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी, जबकि शिया मुस्लिम इसे जहर देने की घटना मानते हैं।
जानलेवा हमलों का इतिहास
इस्लामिक ग्रंथों और ऐतिहासिक दस्तावेजों में उल्लेख है कि पैगंबर मोहम्मद पर कई बार जानलेवा हमले हुए। इनमें से एक प्रमुख हमला एक महिला द्वारा किया गया, जिसने उनकी मृत्यु को लेकर विवाद उत्पन्न किया।
जहर देने की घटना का विवरण
साल 629 में, पैगंबर मोहम्मद ने अरब के खैबर क्षेत्र में इस्लाम का प्रचार करने के लिए एक अभियान चलाया। इस लड़ाई में मुसलमानों और यहूदियों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें कई यहूदी मारे गए। एक यहूदी महिला, जैनब बिन्त अल-हारिस, ने अपने परिवार को खोने के बाद बदला लेने का निर्णय लिया।
हदीस और सीरा में वर्णित है कि जैनब ने एक बकरे के मांस में जहर मिलाकर पैगंबर को परोसा। उनका उद्देश्य था कि यदि पैगंबर इस जहर से मर जाते हैं, तो वे साधारण इंसान हैं, और यदि बच जाते हैं, तो वे अल्लाह के सच्चे दूत हैं।
ज़हर का प्रभाव और अंतिम समय
सुन्नी हदीस सुन्न अबू दाऊद – हदीस नंबर 4512 के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद ने वह मांस चखा और इसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई। माना जाता है कि इस घटना के बाद वे लगभग चार वर्षों तक दर्द और बीमारी से जूझते रहे। हालांकि, पैगंबर को पता था कि जैनब ने उन्हें जहर दिया था, फिर भी उन्होंने उसे माफ कर दिया।
समय के साथ उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति कमजोर होती गई। कहा जाता है कि अंतिम समय में उन्हें अपने आसपास के लोगों पर भी संदेह होने लगा था। हदीस में वर्णित है कि एक बार उन्होंने अपनी पत्नी आयशा पर दवा में गड़बड़ी का संदेह किया।