पूर्व CJI बीआर गवई ने अरावली पर फैसले में सुधार की संभावना जताई
पूर्व मुख्य न्यायाधीश का बयान
पूर्व सीजेआई बीआर गवई
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बीआर गवई ने हाल ही में अरावली पहाड़ियों से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यदि इस फैसले में कोई गलती है, तो इसे सुधारने का अधिकार बाद की पीठ को है। यह निर्णय 20 नवंबर, 2025 को उनकी अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित किया गया था।
जस्टिस गवई ने यह भी बताया कि इस मामले पर जनता में जो आक्रोश है, वह जानकार लोगों द्वारा उठाया गया है, न कि अज्ञानी लोगों द्वारा। ऐसे में, यदि आवश्यक हो, तो इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
कानून में बदलाव की आवश्यकता
उन्होंने कहा कि कानून को स्थिर नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे विकसित होना चाहिए। जब भी अदालतें पूर्व के आदेशों में त्रुटि पाती हैं, वे उन्हें सुधारने का कार्य करती हैं। यह मामला पुनर्विचार के लिए आ सकता है, और चूंकि यह पर्यावरण से संबंधित है, इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
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पीठ की स्वतंत्रता
जस्टिस गवई ने कहा कि यदि बाद की पीठ को लगता है कि कुछ और करने की आवश्यकता है, तो यह हमेशा स्वीकार्य है। अदालत को हमेशा अपने निर्णय में सुधार करने का अधिकार है।
अरावली विवाद का सारांश
अरावली पर्वत माला को लेकर नया विवाद तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने इसकी नई परिभाषा दी। अब कहा जा रहा है कि केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा। पर्यावरणविदों का मानना है कि इससे खनन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान होगा। अरावली पर्वत श्रृंखला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली हुई है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने अदालत में अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रखा है।
