पितृ पक्ष में प्याज और लहसुन से परहेज का महत्व

पितृ पक्ष और इसका महत्व
पितृ पक्ष का आरंभ रविवार, 7 सितंबर से हो रहा है, और इस दिन वर्ष 2025 का अंतिम चंद्रग्रहण भी होगा। धार्मिक ग्रंथों में पितृ पक्ष के दौरान विशेष आहार नियमों का उल्लेख किया गया है। इन दिनों में सात्विक भोजन का सेवन करना सर्वोत्तम माना जाता है। हिंदू धर्म में भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक भोजन को शुद्ध, शांत और मानसिक नियंत्रण के लिए अनुकूल माना जाता है। राजसिक भोजन उत्साह और इच्छाओं को बढ़ाता है, जबकि तामसिक भोजन आलस्य, क्रोध और नकारात्मक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। यही कारण है कि पूजा, उपवास, धार्मिक अनुष्ठानों और पितृ पक्ष के दौरान सात्विक भोजन को प्राथमिकता दी जाती है।
प्याज और लहसुन से 16 दिन दूर रहें

पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष या महालया पक्ष भी कहा जाता है।
यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक लगभग 16 दिनों की होती है। इसके विशेष महत्व का उल्लेख ग्रंथों में किया गया है। पितृ पक्ष में तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध करने से पूर्वज संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते हैं, जिससे उनके वंशजों की सेहत, आयु और समृद्धि बढ़ती है। लेकिन इन 16 दिनों के दौरान प्याज और लहसुन से बचने की सलाह दी जाती है।
पितृ पक्ष में प्याज और लहसुन से परहेज का कारण
पितृ पक्ष में प्याज और लहसुन का सेवन गलती से भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये श्राद्ध की पवित्रता को तोड़ते हैं और पूर्वजों के आशीर्वाद में बाधा डालते हैं। पूर्वजों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध में शुद्ध, सात्विक और पवित्र भोजन आवश्यक है। प्याज और लहसुन उन खाद्य पदार्थों में आते हैं जो तामसिक (अज्ञानता, आलस्य, वासना) और राजसिक (क्रोध, अतिवाद, उग्रता) माने जाते हैं। इनका सेवन करने से पूर्वज और देवता प्रसन्न नहीं होते, और श्राद्ध का फल अधूरा रह जाता है।
शरीर और मन की विक्षिप्तता
हालांकि प्याज और लहसुन शाकाहारी होते हैं, लेकिन पितृ पक्ष के दौरान इन्हें वर्जित माना जाता है। ये खाद्य पदार्थ दैनिक जीवन में स्वास्थ्यवर्धक हो सकते हैं, लेकिन हिंदू ग्रंथों में इन्हें तामसिक और कभी-कभी राजसिक बताया गया है। इनका सेवन शरीर की ऊर्जा को नीचे की ओर खींचता है, मन में बेचैनी और वासना को बढ़ाता है और ध्यान में विघ्न डालता है। चूंकि पितृ पक्ष, उपवास और पूजा का उद्देश्य मन को शुद्ध करना और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करना है, तामसिक भोजन का सेवन करने से मन भौतिक इच्छाओं की ओर भटक सकता है, जिससे आध्यात्मिक साधना का उद्देश्य नष्ट हो जाता है।
प्याज और लहसुन की पौराणिक उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में अमृत का वितरण किया, तब देवताओं के बीच एक राक्षस ने धोखे से कुछ अमृत पी लिया। जब सूर्य और चंद्रमा ने शिकायत की, तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का सिर काट दिया, जिससे राहु और केतु का निर्माण हुआ। कहा जाता है कि प्याज और लहसुन उस राक्षस के शरीर से गिरे रक्त की बूंदों से उत्पन्न हुए, इसलिए इन्हें तामसिक और अशुद्ध माना जाता है और धार्मिक अनुष्ठानों में इनका सेवन वर्जित है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण और साधुओं का अभ्यास
आयुर्वेद भी प्याज और लहसुन को तीखा, गर्म और उत्तेजक मानता है। माना जाता है कि ये इंद्रियों को उत्तेजित करते हैं और क्रोध, आलस्य और वासना को बढ़ाते हैं। इसलिए योगी, साधु और संत इनसे दूर रहते हैं और अपनी साधना को बाधित नहीं करने के लिए सात्विक आहार को प्राथमिकता देते हैं।
पितृ पक्ष और सात्विक भोजन का उद्देश्य
पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध से पूर्वजों को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। यह वंशजों के जीवन को भी शुभ बनाता है। पितृ पक्ष को आभार का समय भी कहा जाता है। इस दौरान पूर्वजों की आत्माएं अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा करती हैं। संतुष्ट पूर्वज वंशजों की सेहत, दीर्घायु और समृद्धि को बढ़ाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह श्राद्ध की पवित्रता को बाधित करता है और पूर्वजों के आशीर्वाद में रुकावट डालता है। ग्रंथों में पितृ पक्ष के दौरान फल, दूध, दही, सब्जियां और अनाज जैसे सात्विक भोजन का सेवन करने की सलाह दी गई है। ऐसा भोजन शरीर को हल्का और मन को स्थिर रखता है, जो आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
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