पितृ पक्ष: मान्यताएँ और विशेष महत्व

पितृ पक्ष की शुरुआत
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष का आरंभ हो चुका है, जो 2 सितंबर से 17 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण जैसे कार्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। खासकर कौआ, गाय और कुत्ते को भोजन देने की परंपरा है। चावल के आटे से बने पिंड का दान करना अनिवार्य माना जाता है।
गया में पिंडदान का महत्व
पितृ पक्ष से जुड़ी कई मान्यताएँ हैं। बिहार के गया में पिंडदान और श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहाँ हम आपको बताएंगे कि गया में पिंडदान करने का क्या खास महत्व है।
यम बलि और श्वान बलि का महत्व
पितृ पक्ष में यम बलि और श्वान बलि देने की परंपरा है। यम बलि में कौए को भोजन दिया जाता है, जबकि श्वान बलि में कुत्ते को। कौआ यमराज का संदेशवाहक माना जाता है, और यह मान्यता है कि यमराज के पास दो कुत्ते हैं। इसलिए इन दिनों कौए और कुत्ते को भोजन देना आवश्यक है। गाय को भी भोजन दिया जाता है, क्योंकि इसे माता माना जाता है।
पितर देवता के स्वागत के लिए खीर-पूड़ी
पितृ पक्ष में पके हुए अन्न का दान करने का एक विशेष कारण है। खीर को पायस अन्न माना जाता है, जो पहले भोग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चावल एक ऐसा अनाज है जो जल्दी खराब नहीं होता, और इसे जन्म से मृत्यु तक के संस्कारों में शामिल किया जाता है। पितर देवता के स्वागत के लिए खीर और पूड़ी बनाई जाती है।
श्राद्ध के समय कुशा का महत्व
श्राद्ध करते समय अनामिका ऊँगली में कुशा बांधना चाहिए, जिससे मन शांत रहे। कुशा को पवित्र माना जाता है और यह सभी कार्यों के लिए उपयोगी होता है।
श्राद्ध का उचित समय
पितृ पक्ष में श्राद्ध का उचित समय दोपहर का माना गया है। इस समय पितर देवता सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करते हैं, जिससे उनका भोग अच्छी तरह से ग्रहण किया जा सके।
गरुड़ पुराण का महत्व
पितृ पक्ष में गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है। यह पुराण जीवन के जन्म और मृत्यु से जुड़े रहस्यों को उजागर करता है और कर्मों के अनुसार फल की प्राप्ति के बारे में बताता है।