पाकिस्तान में सेना का प्रभाव: 78 वर्षों की सत्ता और एयरफोर्स की चुनौती

पाकिस्तान की सेना का राजनीतिक वर्चस्व
पाकिस्तान की सेना ने देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता के बाद से, सेना ने 33 वर्षों तक सीधे शासन किया है और शेष 45 वर्षों में अप्रत्यक्ष रूप से देश का संचालन किया है। अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ जैसे चार सेना प्रमुख राष्ट्रपति रह चुके हैं।
विदेश नीति पर सेना का नियंत्रण
पाकिस्तान की विदेश नीति, विशेषकर भारत के साथ संबंध, सेना के नियंत्रण में माने जाते हैं। 1972 से, ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (JCSC) के अधिकांश अध्यक्ष सेना से ही रहे हैं। पाकिस्तान के दो फील्ड मार्शल, अयूब खान और आसिम मुनिर, भी सेना से हैं। हालिया संघर्षों ने पाक सेना के प्रभुत्व को चुनौती दी है, खासकर पाक एयरफोर्स द्वारा।
सेना का आर्थिक दबदबा
पाकिस्तान की सेना का दबदबा ISI और परमाणु हथियारों के नियंत्रण वाले Strategic Plans Division (SPD) पर भी निर्भर है। इसके अलावा, सेना देश की सबसे बड़ी भूमि मालिक और व्यवसायी समूह है। DHA, फौजी फाउंडेशन और आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट जैसे संगठनों के माध्यम से, सेना का रियल एस्टेट, खनन, निर्माण और खुदरा व्यापार में महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आयशा सिद्दीका की 2007 में प्रकाशित किताब 'मिलिट्री इंक' के अनुसार, सेना की संपत्ति 20 अरब डॉलर थी, जो अब 50 अरब डॉलर से अधिक बताई जाती है। यह पाकिस्तान की 400 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है।
पाकिस्तान एयरफोर्स की बढ़ती चुनौती
हाल ही में हुए पहलगाम हमले के बाद, पाकिस्तान एयरफोर्स (PAF) ने सेना के प्रभुत्व को चुनौती दी है, जिससे सेना की छवि को झटका लगा है। फिर भी, पाकिस्तान की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर सेना का नियंत्रण आज भी बना हुआ है। हालांकि, जनता के बीच एयरफोर्स की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है।