पाकिस्तान में राजनीतिक संकट: विपक्ष ने 'ब्लैक डे' का ऐलान किया

पाकिस्तान की राजनीति में एक नया मोड़ आया है, जब विपक्ष ने सरकार की विफलताओं के खिलाफ 8 फरवरी को 'ब्लैक डे' मनाने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने विपक्ष के साथ बातचीत के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है, लेकिन यह केवल 'वैध मामलों' पर आधारित होगी। जानें इस राजनीतिक संकट के पीछे की कहानी और क्या है इसके संभावित परिणाम।
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पाकिस्तान में राजनीतिक संकट: विपक्ष ने 'ब्लैक डे' का ऐलान किया

पाकिस्तान की राजनीति में नया मोड़

पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति एक बार फिर बदल रही है। विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार की विफलताओं को उजागर किया और 8 फरवरी को 'ब्लैक डे' मनाने का निर्णय लिया। इस घोषणा के बाद सरकार के नेता थोड़े असहज नजर आए। पहले, प्रभावशाली मंत्री इमरान खान पर चर्चा न करने का संकल्प ले रहे थे, लेकिन अब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बातचीत के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है। उन्होंने मंगलवार को कहा कि वह विपक्ष के साथ संवाद के लिए तैयार हैं, लेकिन यह केवल 'वैध मामलों' पर आधारित होगा।


विपक्ष का सम्मेलन और सरकार की नाकामियां

21 दिसंबर को, विपक्षी गठबंधन तहरीक तहफ्फुज आईन-ए-पाकिस्तान (टीटीएपी) ने एक 'राष्ट्रीय सम्मेलन' आयोजित किया, जिसमें सरकार की विफलताओं, अर्थव्यवस्था की स्थिति और कानून व्यवस्था की समस्याओं पर चर्चा की गई। उन्होंने 8 फरवरी 2023 को चुनी गई सरकार की वैधता पर सवाल उठाए और इसे 8 फरवरी 2026 को मनाने का निर्णय लिया। कुछ दलों ने जनता के हित में संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।


शहबाज शरीफ का प्रस्ताव

प्रधानमंत्री ने इस्लामाबाद में एक संघीय कैबिनेट बैठक में विपक्ष के साथ बातचीत का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष बातचीत के लिए तैयार है, तो सरकार भी तैयार है। शरीफ ने यह भी कहा कि बातचीत में कोई 'ब्लैकमेलिंग' नहीं होनी चाहिए और यह केवल 'वैध मामलों' पर केंद्रित होनी चाहिए।


राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता

टीटीएपी ने मौजूदा संकट को देखते हुए एक नए लोकतंत्र चार्टर की आवश्यकता पर जोर दिया। कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने सहिष्णुता और संवाद पर आधारित एक नए राष्ट्रीय राजनीतिक चार्टर का प्रस्ताव रखा। पीएम के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने कहा कि राजनीतिक स्थिरता केवल संयम और आपसी सम्मान से ही संभव है।


पिछले प्रयासों की विफलता

यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने बातचीत का प्रस्ताव रखा है। पिछले साल तनाव के बाद, दोनों पक्षों ने राजनीतिक माहौल को शांत करने के लिए बातचीत शुरू की थी, लेकिन यह बड़े मुद्दों पर अटक गई। शहबाज सरकार ने इस साल फरवरी में एक बार फिर पीटीआई को बातचीत का प्रस्ताव दिया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।


सैन्य और सरकार के बीच संबंध

स्पष्ट है कि पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति अब भी आईएसआई और सेना के नियंत्रण में है। सरकार बातचीत का प्रस्ताव देकर दिखावा कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान जिस दिशा में बढ़ रहा है, वहां संवाद का कोई अर्थ नहीं रह गया है।