पाकिस्तान की नई सुरक्षा और ऊर्जा रणनीति: बड़ा रक्षा बजट और ऑफशोर तेल खोज

पाकिस्तान सरकार ने अपनी सुरक्षा और ऊर्जा नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए 50 अरब PKR का अतिरिक्त रक्षा बजट मंजूर किया है और ऑफशोर तेल खोज के लिए कृत्रिम द्वीप बनाने की प्रक्रिया शुरू की है। यह कदम आर्थिक संकट और महंगाई के बीच उठाया गया है, जो इस्लामाबाद की रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है। जानें कि ये निर्णय पाकिस्तान की भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं।
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पाकिस्तान की नई सुरक्षा और ऊर्जा रणनीति: बड़ा रक्षा बजट और ऑफशोर तेल खोज

पाकिस्तान की नई सुरक्षा और ऊर्जा पहल

पाकिस्तान सरकार ने अपनी सुरक्षा और ऊर्जा नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए दो प्रमुख निर्णय लिए हैं। आर्थिक समन्वय समिति (ECC) ने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा, नौसैनिक ठिकानों के उन्नयन और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए 50 अरब PKR (लगभग ₹1,576 करोड़) के अतिरिक्त रक्षा बजट को मंजूरी दी है। इसके साथ ही, पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड (PPL) ने सिंध तट से 30 किलोमीटर दूर समुद्र में कृत्रिम ड्रिलिंग द्वीप बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे ऑफशोर तेल और गैस की खोज में तेजी लाई जा सके। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान में “विशाल तेल भंडार” की बात कहने के बाद, ऊर्जा क्षेत्र में सरकार की अपेक्षाएँ और बढ़ गई हैं।


पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई, राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में रक्षा बजट में अचानक 50 अरब PKR की वृद्धि और ऑफशोर ऊर्जा खोज को बढ़ावा देना इस बात का संकेत है कि इस्लामाबाद अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को सुरक्षा सुदृढ़ीकरण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में मोड़ रहा है। ये कदम तत्कालीन आर्थिक दबावों के विपरीत हैं, लेकिन पाकिस्तान की रणनीतिक सोच एक महत्वपूर्ण संदेश देती है।


यह अतिरिक्त राशि पहले से घोषित 2,550 अरब PKR के रक्षा बजट के ऊपर है। पाकिस्तान सीमा सुरक्षा और तस्करी रोकने के लिए अफगानिस्तान-ईरान सीमा पर नई फेंसिंग करना चाहता है और दक्षिण और उत्तर के स्पेशल सिक्योरिटी डिविज़न (SSD) को बड़ा आवंटन देना चाहता है, जो CPEC में विदेशी निवेश और चीनी हितों की सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान नौसैनिक ठिकानों को अपग्रेड करने की योजना बना रहा है, जो अरब सागर में रणनीतिक गतिविधियों को नई दिशा दे सकता है।


CPEC की सुरक्षा इस पूरे ढांचे का केंद्रीय तत्व है। चीन ने पाकिस्तान में अब तक 25 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इस अतिरिक्त बजट का संदेश है कि पाकिस्तान CPEC को किसी भी कीमत पर सुरक्षित रखना चाहता है, भले ही इसके लिए आर्थिक बोझ बढ़ रहा हो।


यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान की विदेशी मुद्रा भंडार सीमित है, IMF के नए कार्यक्रम के लिए कठोर शर्तें लागू हैं, महंगाई 20% से ऊपर है, और ऊर्जा सब्सिडी लगभग समाप्त कर दी गई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान के पास इस तरह के भारी सुरक्षा व्यय की क्षमता है? सरकार का तर्क है कि यह “नियमित बजट से अलग तकनीकी अनुदान” है, जो विशेष परियोजनाओं के लिए प्रयोग होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान की आर्थिक संरचना ऐसे विशेष व्ययों का बोझ लंबे समय तक नहीं झेल सकती। फिर भी इस्लामाबाद सैन्य आवश्यकताओं पर समझौता नहीं करना चाहता।


दूसरी ओर, पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड द्वारा निर्मित कृत्रिम द्वीप ऊर्जा खोज में एक महत्वपूर्ण कदम है। लगभग 25 कुएँ खोदे जाने की योजना है, जिसमें निवेश का अनुमान 750 मिलियन से 1 अरब डॉलर तक है। इसके तहत 23 नए ऑफशोर ब्लॉकों का आवंटन होना है। ट्रंप द्वारा “massive oil reserves” के दावे ने पाकिस्तान में नई उम्मीदें जगा दी हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान ने 1947 से अब तक समुद्र में केवल 18 कुएँ खोदे हैं, और उनमें से अधिकतर असफल रहे हैं। 2019 की Kekra-1 ड्रिलिंग में असफलता के बाद ExxonMobil ने बाज़ार छोड़ दिया था। अब जब पाकिस्तान पुनः आक्रामक ऑफशोर अभियान चला रहा है, तो सवाल यह है कि क्या यह निर्णय आर्थिक ठोस आधार पर है या राजनीतिक उम्मीदों पर आधारित एक जोखिमपूर्ण दांव है? कृत्रिम द्वीप बनाना तकनीकी दृष्टि से नया कदम है, लेकिन इसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं है।


ट्रंप द्वारा “तेल सहयोग” का ऐलान पाकिस्तान के लिए बड़ा राजनैतिक संकेत है। यदि अमेरिकी कंपनियाँ पाकिस्तान के ऑफशोर अभियान का हिस्सा बनती हैं, तो चीन के साथ पाकिस्तान की ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी प्रभावित हो सकती है। अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान नई स्थिति में आ सकता है, और अरब सागर में रणनीतिक सक्रियता के मायने बदल सकते हैं। यह पाकिस्तान की विदेश नीति में संभावित बदलाव की ओर संकेत करता है।


भारत की दृष्टि से देखें तो भारत का रक्षा बजट पाकिस्तान की तुलना में कहीं बड़ा है, लेकिन पाकिस्तान की नई रणनीतिक प्राथमिकताएँ भारत के लिए कुछ संकेत देती हैं। जैसे- अफगान सीमा पर फेंसिंग और SSD की मजबूती, नौसैनिक बेस अपग्रेड, अरब सागर में ऑफशोर परियोजनाएँ, अमेरिका और चीन दोनों की ऊर्जा में भागीदारी। यह सब मिलकर पाकिस्तान की सामरिक सोच में दीर्घकालिक परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं, जिसका क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे पर प्रभाव पड़ सकता है।


पाकिस्तान एक ओर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, दूसरी ओर सुरक्षा और ऊर्जा दोनों मोर्चों पर आक्रामक नीति अपना रहा है। यह दोहरी रणनीति जोखिमपूर्ण और राजनीतिक रूप से साहसिक है। यदि ऑफशोर खोज सफल होती है, तो यह पाकिस्तान को आर्थिक राहत दे सकती है। लेकिन यदि असफल होती है, तो मौजूदा वित्तीय संकट और गहरा सकता है। वहीं, सुरक्षा व्यय में तीव्र वृद्धि पाकिस्तान की आर्थिक सुधार क्षमता को सीमित कर सकती है। इन दोनों फैसलों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपने भविष्य को ऊर्जा संसाधनों और रणनीतिक सुरक्षा की दो पटरी पर आगे बढ़ाना चाहता है। यह दिशा कितनी स्थिरता लाएगी और कितना जोखिम, यह आने वाले वर्षों में स्पष्ट होगा।