पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता: मानवता की जिम्मेदारी

पर्यावरण और मानवता का संबंध
ईश्वर ने मानव को मिट्टी, पानी, अग्नि, स्थिरता और प्राणवायु देकर बनाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मानव जीवन पर्यावरण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन आज की स्थिति यह है कि मनुष्य ने पृथ्वी के आधे हिस्से को बदल दिया है। शहरीकरण, कृषि, खनन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भूमि का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिसके कारण जंगलों की कटाई हो रही है।
वृक्षारोपण की विडंबना
सीमेंट और कंक्रीट की इमारतों में मानव कैद होता जा रहा है, और वृक्षारोपण केवल कागजों तक सीमित रह गया है। ऐसे में हम प्रकृति का संरक्षण कैसे कर सकते हैं? हालात यह दर्शाते हैं कि हम प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप प्रकृति भी हमें नष्ट करने की योजना बना रही है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान से हम सभी परिचित हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हम कूलर और एयर कंडीशनर का सहारा लेते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि जीव-जंतुओं का क्या होगा। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और पौधारोपण की कमी के कारण प्रकृति में केवल काले और सफेद रंग का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। रंगहीन प्रकृति को फिर से रंगीन बनाने के लिए हमें सजग रहना होगा।
अंतरराष्ट्रीय प्रयास
1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान खोजने की आवश्यकता बताई। 2015 में पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर 200 से अधिक देशों ने एक समझौता किया। हालांकि, इस समझौते का जनमानस पर प्रभाव नहीं पड़ा है।
अन्य देशों से प्रेरणा
डेनमार्क में 41 प्रतिशत यात्रा साइकिल से की जाती है, जबकि फिनलैंड में व्यक्तिगत वाहनों की व्यवस्था समाप्त करने की योजना है। नार्वे ई-वाहनों को अपनाने पर जोर दे रहा है। हमें भी इन देशों से प्रेरणा लेकर प्रकृति को संरक्षित करने के लिए प्रयास करने चाहिए।