पर्यावरण न्याय पर पूर्व अधिकारियों की चिंता: सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर उठे सवाल

एक समूह, जिसमें 79 पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया पर्यावरण संबंधी आदेशों पर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि ये निर्णय जीवन और प्रकृति की रक्षा की संवैधानिक जिम्मेदारी को कमजोर कर सकते हैं। विशेष रूप से, अरावली पर्वत श्रृंखला के संबंध में नए आदेशों पर भी सवाल उठाए गए हैं। समूह ने स्पष्ट किया है कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और उनका उद्देश्य संविधान की मूल भावना और पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखना है।
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पर्यावरण न्याय पर पूर्व अधिकारियों की चिंता: सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर उठे सवाल

पर्यावरण से जुड़े न्यायिक फैसलों पर बहस

पर्यावरण से संबंधित न्यायिक निर्णयों को लेकर एक नई चर्चा शुरू हो गई है। पूर्व सरकारी अधिकारियों के एक समूह, जो 'संवैधानिक आचरण समूह' (सीसीजी) के नाम से जाना जाता है, ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि ये निर्णय जीवन और प्रकृति की रक्षा की संवैधानिक जिम्मेदारी को कमजोर कर सकते हैं।


पूर्व अधिकारियों का समूह

इस समूह में 79 पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, जिनमें कैबिनेट सचिव, राजदूत, गृह और वन सेवा के उच्च अधिकारी, पुलिस महानिदेशक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे पदों पर कार्य कर चुके लोग शामिल हैं। इन्होंने मिलकर एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें हाल के न्यायिक रुझानों पर सवाल उठाए गए हैं।


सुप्रीम कोर्ट का विवादास्पद आदेश

पत्र में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के 18 नवंबर 2025 के आदेश का उल्लेख किया गया है, जिसमें तीन जजों की पीठ ने यह अनुमति दी कि पर्यावरणीय मंजूरी बाद में भी दी जा सकती है, जब तक इस पर बड़ी पीठ का निर्णय नहीं आता। इससे पहले, मई में एक अन्य पीठ ने ऐसे 'एक्स पोस्ट फैक्टो' पर्यावरणीय मंजूरी को अवैध करार दिया था।


परियोजनाओं को मंजूरी देने का रास्ता

इस निर्णय के परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार को पहले से चल रही परियोजनाओं के लिए बाद में मंजूरी प्राप्त करने का अवसर मिल गया है, जिसे पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंताजनक बताया है। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इस मामले पर बड़ी पीठ की सुनवाई कब होगी।


अरावली पर्वत श्रृंखला पर चिंता

पत्र में अरावली पर्वत श्रृंखला से संबंधित एक अन्य आदेश पर भी चिंता व्यक्त की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अरावली की नई परिभाषा तय करने की बात कही है, जिससे 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर्यावरणीय संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है। इससे खनन और निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की आशंका जताई गई है, जो दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक धूल अवरोधक की भूमिका निभाने वाले इस क्षेत्र को कमजोर कर सकता है।


वैज्ञानिक मैपिंग और टिकाऊ खनन योजना

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को अरावली क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक मैपिंग और टिकाऊ खनन योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। हालांकि, पूर्व अधिकारियों का कहना है कि यह प्रक्रिया भविष्य में पर्यावरणीय दोहन को वैधता प्रदान कर सकती है।


सीसीजी की चिंताएं

सीसीजी ने सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य आदेश पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की भूमिका कमजोर होती दिखाई दे रही है। यह समिति वर्ष 2002 में पर्यावरण मामलों पर अदालत को स्वतंत्र सलाह देने के लिए बनाई गई थी। समूह का आरोप है कि हाल के वर्षों में सीईसी सरकार के रुख के अनुरूप फैसलों का समर्थन करती नजर आई है।


राजनीतिक संबंधों से इनकार

पूर्व अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि उनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और उनका उद्देश्य केवल संविधान की मूल भावना, पर्यावरण संरक्षण और संस्थागत संतुलन को बनाए रखना है।