पद्मश्री श्रीनाथ खंडेलवाल की दुखद कहानी: परिवार की उपेक्षा में वृद्धाश्रम में बिताई अंतिम दिन

पद्मश्री श्रीनाथ खंडेलवाल की कहानी एक दुखद उदाहरण है कि कैसे परिवार की उपेक्षा के चलते एक महान साहित्यकार को वृद्धाश्रम में बिताना पड़ा। 80 करोड़ की संपत्ति के मालिक होते हुए भी, उनके बच्चों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। जानें उनके जीवन की सच्चाई और अंतिम समय की घटनाएं।
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पद्मश्री श्रीनाथ खंडेलवाल की दुखद कहानी: परिवार की उपेक्षा में वृद्धाश्रम में बिताई अंतिम दिन

परिवार की उपेक्षा का दर्द

पद्मश्री श्रीनाथ खंडेलवाल की दुखद कहानी: परिवार की उपेक्षा में वृद्धाश्रम में बिताई अंतिम दिन


एक पुरानी कहावत है, 'पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय', जो आज के समय में एक सच्चाई बनती जा रही है। आजकल के लोग अपने परिवार के साथ रहने में रुचि नहीं रखते, चाहे वह उनके माता-पिता ही क्यों न हों।


बच्चे अपने स्वार्थ के चलते माता-पिता के प्यार को नजरअंदाज करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसका एक स्पष्ट उदाहरण वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों की स्थिति है।


वाराणसी में एक दिल दहला देने वाली घटना

वाराणसी में एक दुखद घटना सामने आई है, जिसमें पद्मश्री से सम्मानित आध्यात्मिक लेखक श्रीनाथ खंडेलवाल, जिनके पास 80 करोड़ की संपत्ति थी, को उनके बच्चों ने वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर कर दिया। 80 वर्ष की आयु में उनकी वृद्धाश्रम में मृत्यु हो गई। सबसे दुखद यह था कि उनके अंतिम क्षणों में कोई भी परिजन उनके पास नहीं आया।


साहित्य और आध्यात्मिकता में समर्पित जीवन

श्रीनाथ खंडेलवाल ने 2023 में पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त किया था और उन्होंने सौ से अधिक किताबें लिखी थीं। उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं, जिनमें से एक बिजनेसमैन है और दूसरी सुप्रीम कोर्ट में वकील है। वह एक साहित्यकार और आध्यात्मिक व्यक्ति थे।


जायदाद का हड़पना और अंतिम संस्कार

श्रीनाथ खंडेलवाल की संपत्ति का लाभ उठाकर उनके बेटे और बेटी ने उन्हें बीमार अवस्था में बेसहारा छोड़ दिया। समाजसेवियों ने उन्हें काशी कुष्ठ वृद्धाश्रम में पहुंचाया, जहां उनकी देखभाल की गई। लेकिन उनके परिवार का कोई भी सदस्य उनकी कुशलक्षेम पूछने नहीं आया।


जब श्रीनाथ खंडेलवाल का स्वास्थ्य बिगड़ गया, तो उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु की खबर सुनकर उनके बच्चों ने अंतिम दर्शन करने से मना कर दिया, और अंत में समाजसेवी अमन ने चंदा इकट्ठा कर उनका अंतिम संस्कार किया।