पंजाब की जेलों में छिपकली की पूंछ का नशा: चौंकाने वाला खुलासा

पंजाब की जेलों में कैदियों द्वारा छिपकली की पूंछ का नशा करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जांच में पता चला है कि कैदी छिपकलियों की पूंछ को सुखाकर उसका पाउडर बनाकर सेवन कर रहे थे। इस खुलासे ने जेल प्रशासन और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है। प्रशासन ने सुरक्षा के लिए छिपकलियों को जेल से हटाने का निर्णय लिया है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और जेल प्रशासन की कार्रवाई के बारे में।
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पंजाब की जेलों में छिपकली की पूंछ का नशा: चौंकाने वाला खुलासा

पंजाब की जेलों में नशे का नया तरीका

पंजाब की जेलों में कैदियों द्वारा छिपकली की पूंछ का नशा करने का मामला सामने आया है, जिसने जेल प्रशासन और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चौंका दिया है। अब उन कैदियों की पहचान की जा रही है जो इस नशे में लिप्त थे।


छिपकलियों की कमी का रहस्य

पंजाब की जेलों में छिपकली की पूंछ का नशा: चौंकाने वाला खुलासा
पंजाब की जेलों से छिपकलियों के अचानक गायब होने का कारण अब स्पष्ट हो गया है। जांच में यह सामने आया कि कई कैदी छिपकली की पूंछ को सुखाकर उसका पाउडर बनाकर नशे के रूप में उपयोग कर रहे थे। इस खुलासे के बाद जेल प्रशासन ने सुरक्षा के लिए छिपकलियों को जेल परिसर से हटाने का निर्णय लिया।


छिपकली की पूंछ का नशा करने की प्रक्रिया

जांच में यह भी पता चला कि कैदी छिपकलियों की पूंछ काटकर उसे सुखाते थे और फिर उसे पीसकर पाउडर बनाते थे। इस पाउडर को तंबाकू, चायपत्ती या बीड़ी के मसाले में मिलाकर सेवन किया जाता था। कई कैदियों ने बताया कि इससे उन्हें नशे जैसा अनुभव होता था।


पाउडर मिलने पर हड़कंप

गश्त के दौरान अधिकारियों ने देखा कि कुछ कैदियों का व्यवहार सामान्य से भिन्न था, जिससे उनकी गतिविधियों पर संदेह हुआ। जब उनकी जांच की गई, तो उनके पास छिपकली की पूंछ का पाउडर मिला।


छिपकलियों की संख्या में कमी

इसके बाद प्रशासन ने विशेष सर्वेक्षण किया और पाया कि जेल परिसर में छिपकलियों की संख्या काफी कम हो गई थी। इस आधार पर, जैव विविधता विशेषज्ञों की मदद से छिपकलियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया।


जेल प्रशासन की कार्रवाई

उच्च अधिकारियों के निर्देश पर, सभी जेलों में निगरानी को बढ़ा दिया गया है। जेल अधीक्षक ने कहा कि छिपकली की पूंछ का सेवन मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है। प्रशासन उन कैदियों की पहचान कर रहा है जो इस गतिविधि में शामिल थे, और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत FIR भी दर्ज की जा सकती है।