पंजाब का विभाजन: एक ऐतिहासिक त्रासदी की कहानी

इस लेख में हम पंजाब के विभाजन की कहानी को समझेंगे, जो भारत और पाकिस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। 1947 में हुए इस विभाजन ने लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया और कई त्रासदियों को जन्म दिया। जानिए कैसे धार्मिक आधार पर पंजाब का विभाजन हुआ और लाहौर जैसे महत्वपूर्ण शहर पाकिस्तान में क्यों चले गए। यह लेख आपको उस समय की जटिलताओं और विभाजन के पीछे के कारणों की गहराई में ले जाएगा।
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पंजाब का विभाजन: एक ऐतिहासिक त्रासदी की कहानी

पंजाब का ऐतिहासिक महत्व

आज हम एक ऐसे राज्य की चर्चा करेंगे जिसे भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौरान सबसे अधिक नुकसान हुआ। पंजाब, जो भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ने हमेशा देश को नकारात्मक तत्वों से बचाने का कार्य किया है और समय-समय पर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। 1947 में विभाजन के समय पंजाब को सबसे अधिक प्रभावित किया गया। इस विभाजन के कारण मानव इतिहास में सबसे विनाशकारी विस्थापनों में से एक देखने को मिला। बंटवारे के दौरान भड़के दंगों और हिंसा में लाखों लोगों की जान गई। इस त्रासदी में लगभग बीस लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हुए। पहले पंजाब का सीमांत अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ था, लेकिन विभाजन के बाद केवल एक छोटा हिस्सा भारत के पास रह गया। भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से अलग कर दिया गया। 


पंजाब का विभाजन से पूर्व

पंजाब विभाजन से पहले 
प्राचीन काल में पंजाब के कई नाम थे, जिनमें से एक सप्तसिंधु था, जिसका अर्थ 'सात नदियों की भूमि' है। इसमें सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास नदियाँ शामिल हैं, जिन्हें भारत में पवित्र माना जाता है। विभाजन से पहले पंजाब में 29 जिले थे, जिनमें से 16 पाकिस्तान को और 13 भारत को मिले। ये जिले अंबाला, जालंधर, लाहौर, रावलपिंडी, और मुल्तान में विभाजित थे। बंटवारे के बाद लाहौर के दो जिले, अमृतसर और गुरदासपुर, भारत को मिले थे। 


धर्म के आधार पर विभाजन

कैसे धर्म के आधार पर बंट गया पंजाब 
3 जून 1947 को विभाजन की स्वीकृति दी गई थी, और 15 अगस्त को सत्ता का हस्तांतरण होना था। ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्र करने और पाकिस्तान के निर्माण के लिए जल्दी थी। पंडित नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना भी चाहते थे कि दोनों देशों का विभाजन जल्द हो। पंजाब की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी, और वहां से रोज़ सैकड़ों लोगों की मौत की खबरें आ रही थीं। 


लाहौर का भारत में न आना

लाहौर भारत का हिस्सा क्यों नहीं बन सका? 
अगर लाहौर भारत का हिस्सा बन जाता, तो आज का नक्शा अलग होता। अमृतसर में गोल्डन टेम्पल के दर्शन के लिए पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती। विभाजन के समय लाहौर में हिंदू और सिखों की अधिकता थी, लेकिन फिर भी यह पाकिस्तान को दे दिया गया। 


रेडक्लिफ की भूमिका

भारत से बिल्कुल भी अंजान रेड क्लिफ ने खींच दी लकीरें 
जब लॉर्ड माउंटबेटन को भारत को दो हिस्सों में बांटने का कार्य सौंपा गया, तो उन्होंने यह जिम्मेदारी अपने मित्र रेडक्लिफ को दी। रेडक्लिफ ने भारत के नक्शे को देखकर विभाजन की लकीरें खींची, जिसके परिणामस्वरूप कई गलतियाँ हुईं। 


सीमा निर्धारण में रेडक्लिफ की मनमानी

सीमा निर्धारण में रेडक्लिफ की मनमानी 
पंजाब और बंगाल के विभाजन का मुख्य आधार धार्मिक जनसंख्या थी। लाहौर में हिंदू-सिख आबादी का बहुमत था, फिर भी इसे पाकिस्तान को दे दिया गया। रेडक्लिफ ने कहा कि मुसलमानों को पंजाब में एक बड़ा शहर देना आवश्यक था।