नेपाल की राजनीतिक संकट का भारत पर प्रभाव: आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियाँ

नेपाल में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जिसमें व्यापार, निवेश, और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। रक्सौल-बीरगंज और सुनौली-भैरहवा जैसे प्रमुख मार्गों पर बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो रहा है। इसके अलावा, नेपाल में भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का माहौल अनिश्चित हो गया है। ऊर्जा सहयोग में भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए चीन नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है। भारत को इस संकट से निपटने के लिए कूटनीतिक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
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नेपाल की राजनीतिक संकट का भारत पर प्रभाव: आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियाँ

सीमा पार व्यापार और लॉजिस्टिक्स प्रणाली पर प्रभाव

नेपाल में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता का सबसे तात्कालिक प्रभाव सीमा पार व्यापार पर देखा जा सकता है। रक्सौल-बीरगंज और सुनौली-भैरहवा जैसे प्रमुख मार्गों पर आवागमन में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। इससे आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है, जिसके कारण भारतीय निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जबकि नेपाली उपभोक्ताओं को आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ सकता है।


निवेश वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव

नेपाल में 150 से अधिक भारतीय कंपनियाँ कार्यरत हैं, जो देश में आने वाले कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का 35 प्रतिशत से अधिक योगदान देती हैं। लेकिन वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के कारण निवेश का माहौल अनिश्चित होता जा रहा है। उद्योग, टेलीकॉम और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में कार्यरत कंपनियों को परियोजना में देरी और आर्थिक नुकसान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग पर संकट के बादल

भारत और नेपाल के बीच ऊर्जा सहयोग हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है। भारतीय कंपनियों ने सीमा पार जल विद्युत परियोजनाओं में भारी निवेश किया है, जो अब राजनीतिक उथल-पुथल के कारण अनिश्चितता के घेरे में हैं। यदि यह अस्थिरता लंबे समय तक जारी रहती है, तो इन परियोजनाओं की प्रगति बाधित हो सकती है।


चीनी हस्तक्षेप में वृद्धि और क्षेत्रीय संतुलन पर खतरा

नेपाल की आंतरिक अस्थिरता भारत के लिए भू-राजनीतिक खतरों को भी जन्म दे रही है। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए, चीन नेपाल में अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को और मजबूत कर सकता है। भारत पहले से ही बुनियादी ढाँचे और ऊर्जा क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन दीर्घकालिक अस्थिरता सीमा पर सुरक्षा जोखिमों को भी जन्म दे सकती है, जैसे कि तस्करी और सीमा पार अपराध। हाल ही में भारत ने सीमा पर सुरक्षा सतर्कता बढ़ा दी है।


भारत के संवेदनशील आर्थिक क्षेत्रों पर प्रभाव

नेपाल में धार्मिक और सामान्य पर्यटन भी प्रभावित हो सकता है, जो भारत के पर्यटन उद्योग के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसके अलावा, भारत में काम कर रहे नेपाली नागरिकों और उनके माध्यम से आने वाली रेमिटेंस पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसी समय, रेलवे नेटवर्क और एकीकृत चेक पोस्ट जैसे द्विपक्षीय संपर्क परियोजनाएँ भी राजनीतिक अनिश्चितता के कारण धीमी या रुक सकती हैं।


संधियों और सहयोग: आगे का रास्ता

हालांकि स्थिति जटिल है, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से स्थिरता की संभावनाएँ अभी भी जीवित हैं। अगस्त 2025 में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी थी। भारत अपनी 'पड़ोसी पहले' नीति पर कायम है। इस समय, भारत और नेपाल को ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे जैसे साझा हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि इस संकट के प्रभाव को कम किया जा सके।


निष्कर्ष

नेपाल में चल रही राजनीतिक अस्थिरता का भारत पर व्यापार, निवेश, पर्यटन, रेमिटेंस, ऊर्जा सहयोग और सुरक्षा जैसे कई पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। चीन और भारत दोनों इस स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए हैं और अपने प्रभाव क्षेत्र की रक्षा में लगे हुए हैं। ऐसे में, भविष्य में स्थिरता और संतुलन बनाए रखने के लिए मजबूत कूटनीतिक पहलों की आवश्यकता होगी, ताकि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखा जा सके।