नवटोल गांव में नागपंचमी का अनोखा उत्सव: सांपों के मेले की 300 साल पुरानी परंपरा

नवटोल गांव में नागपंचमी के अवसर पर सांपों का एक अनोखा मेला आयोजित किया जाता है, जो 300 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है। इस दिन, ग्रामीण बलान नदी में कूदकर जहरीले सांपों को पकड़ते हैं और उनके साथ खेलते हैं। यह अद्भुत दृश्य देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। जानें इस परंपरा का धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व क्या है।
 | 
नवटोल गांव में नागपंचमी का अनोखा उत्सव: सांपों के मेले की 300 साल पुरानी परंपरा

नागपंचमी का सांपों का मेला

नवटोल गांव, जो बेगूसराय में स्थित है, में नागपंचमी के अवसर पर सांपों का एक विशेष मेला आयोजित किया जाता है। इस दिन, सैकड़ों लोग जहरीले सांपों को नदी से निकालते हैं। यह परंपरा तीन शताब्दियों पुरानी है और स्थानीय लोग इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।


नवटोल गांव में नागपंचमी का अनोखा उत्सव: सांपों के मेले की 300 साल पुरानी परंपरा


भारत के विभिन्न हिस्सों में नागपंचमी पर सांपों को दूध पिलाने की परंपरा है, लेकिन नवटोल गांव में इस दिन नदी से जहरीले सांपों को निकालने का मेला लगता है। यहां के लोग इन सांपों के साथ खेलते हैं, जो इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटकों को आकर्षित करता है।


सांपों का गांव

नवटोल गांव को सांपों का गांव भी कहा जाता है, क्योंकि यहां के लोग अपनी परंपरा को निभाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करते। नागपंचमी के दिन, ग्रामीण बलान नदी में कूदकर सैकड़ों सांप पकड़ते हैं। इस अवसर पर सांप पकड़ने वाले लोग ढोल की थाप पर नाचते हुए सांपों को गले में लटकाकर भगवती मंदिर की ओर बढ़ते हैं।


300 साल पुरानी परंपरा

इस परंपरा की शुरुआत 300 साल पहले रौबी दास नामक एक भक्त ने की थी। तब से, उनके वंशज और अन्य ग्रामीण इस परंपरा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं। नवटोल में नागपंचमी का त्योहार देश के अन्य हिस्सों से पहले मनाया जाता है।


पर्यावरणीय महत्व

ग्रामीणों का कहना है कि नागपंचमी पर सांपों का मेला पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि सांप मीथेन गैस का अवशोषण करते हैं, जो पर्यावरण संतुलन में सहायक होता है। सनातन धर्म में सर्प की पूजा इसी महत्व को पहचानने के लिए की जाती है।


नाग पंचमी का समय

बेगूसराय में नाग पंचमी का त्योहार मिथिला पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। इस वर्ष, यह 15 तारीख को मनाया गया, जबकि देश के अन्य हिस्सों में इसे 29 जुलाई को मनाया जाएगा।