धोरैया विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष: जेडीयू, आरजेडी और जन सुराज की टक्कर
                                        
                                    धोरैया विधानसभा की राजनीतिक पहचान
बिहार के बांका जिले की धोरैया विधानसभा सीट ने हमेशा से अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र राजनीतिक अस्थिरता के लिए प्रसिद्ध है, जहां मतदाता किसी एक पार्टी को स्थायी रूप से प्राथमिकता नहीं देते। इस बार के चुनाव में, धोरैया सीट जेडीयू, राजद और जन सुराज के बीच एक दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बन गई है। आरजेडी द्वारा उम्मीदवार बदलने और जेडीयू द्वारा पुराने चेहरे पर भरोसा जताने से चुनावी समीकरण और भी जटिल हो गए हैं।
किसके बीच मुकाबला
आरजेडी ने अपने मौजूदा विधायक भूदेव चौधरी का टिकट काटकर त्रिभुवन प्रसाद को मैदान में उतारा है। दूसरी ओर, जेडीयू ने मनीष कुमार पर भरोसा जताते हुए उन्हें फिर से टिकट दिया है। इसके अलावा, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने सुमन पासवान को चुनावी दौड़ में शामिल किया है। जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार अनुसूचित जाति के वोटों में सेंध लगाकर मुकाबले को और भी दिलचस्प बना सकते हैं।
चुनावी इतिहास
1951 में स्थापित इस सीट का राजनीतिक इतिहास यह दर्शाता है कि यहां के मतदाता हमेशा बदलते समीकरणों के आधार पर वोट देते हैं। पहले यहां कांग्रेस और वामपंथी दलों का प्रभाव था, लेकिन हाल के वर्षों में मुकाबला मुख्य रूप से आरजेडी और जेडीयू के बीच केंद्रित हो गया है। 1969 में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत ने यहां के मतदाताओं के अप्रत्याशित मिजाज को उजागर किया।
यह ध्यान देने योग्य है कि धोरैया विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसलिए, दलित वोटों के साथ-साथ मुस्लिम, यादव और अन्य समुदायों की गोलबंदी जीत के समीकरण को निर्धारित करती है। सीपीआई, कांग्रेस और जेडीयू ने यहां से 5-5 बार जीत हासिल की है, जबकि 2020 के चुनाव में आरजेडी ने पहली बार इस सीट पर कब्जा जमाया।
