धृतराष्ट्र और गांधारी की कहानी: संतान की परवरिश का महत्व

परिवार की नींव: पति-पत्नी का रिश्ता
हर परिवार की बुनियाद पति और पत्नी के रिश्ते पर निर्भर करती है। इन दोनों पर संतान की परवरिश की जिम्मेदारी होती है, जो बच्चों के भविष्य को आकार देती है। इसलिए माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों पर ध्यान दें और उन्हें अच्छे संस्कार दें। यदि माता-पिता इस पर ध्यान नहीं देते, तो उनके बच्चों का जीवन अंधकार में चला जाता है। महाभारत में धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपने 100 पुत्रों की परवरिश पर ध्यान नहीं दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनके सभी पुत्रों का जीवन अंधकार में चला गया और वे कम उम्र में ही निधन हो गए।
धृतराष्ट्र और गांधारी की कहानी
धृतराष्ट्र का अंधापन और गांधारी का त्याग

धृतराष्ट्र, जो हस्तिनापुर के राजा थे, जन्म से अंधे थे। उनका विवाह गांधारी से हुआ, जो अत्यंत सुंदर थीं। विवाह के समय गांधारी को धृतराष्ट्र के अंधे होने की जानकारी नहीं थी। जब उन्हें यह पता चला, तो उन्होंने भी अंधेरे में जीने का निर्णय लिया और अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली।
संतानों की परवरिश में कमी
धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र
धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र थे, लेकिन अंधे होने के कारण वे अपनी संतानों की सही परवरिश नहीं कर सके। गांधारी ने केवल पत्नी धर्म निभाने पर ध्यान केंद्रित किया और कभी नहीं सोचा कि उनकी आंखों पर पट्टी बांधने से उनके बच्चों का क्या होगा।
गांधारी के भाई ने उनके पुत्रों की देखभाल की, लेकिन वही संस्कार उनके वध का कारण बने। धृतराष्ट्र और गांधारी की अनुपस्थिति में उनके पुत्रों ने अधर्म का मार्ग अपनाया। यदि गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी नहीं बांधी होती और अपने बच्चों का सही से पालन-पोषण किया होता, तो महाभारत का युद्ध टल सकता था।
अंधकार में खोई संतानों की कहानी

धृतराष्ट्र और गांधारी का होना या न होना उनके पुत्रों के लिए कोई मायने नहीं रखता था। बड़े होकर उनके पुत्रों ने उनकी बातों को नहीं माना और लालच में आकर महाभारत युद्ध किया, जिसमें उन्होंने सब कुछ खो दिया।

गांधारी के एक गलत निर्णय के परिणामस्वरूप उनके सभी पुत्र मारे गए, और धृतराष्ट्र और गांधारी को अपनी वृद्धावस्था अकेले बितानी पड़ी। 100 पुत्र होने के बावजूद, उन्हें संतानों का सुख नहीं मिल सका।
माता-पिता की जिम्मेदारी

इसलिए, हर माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने बारे में नहीं, बल्कि अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचें, ताकि उनके बच्चों को एक बेहतर जीवन मिल सके।