धार्मिक महोत्सव में वैराग्य और भक्ति का संगम

सागर में आयोजित पंचकल्याणक जिनबिंब प्रतिष्ठा महोत्सव में वैराग्य और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। पट्टाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में राग और वैराग्य के महत्व पर प्रकाश डाला। महोत्सव के दौरान विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने भाग लिया। जानें इस महोत्सव की विशेषताएँ और इसके पीछे की धार्मिक भावना।
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धार्मिक महोत्सव में वैराग्य और भक्ति का संगम

धार्मिक सभा का आयोजन

धार्मिक महोत्सव में वैराग्य और भक्ति का संगम

सागर : पट्टाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि राग का ऐसा स्वरूप होना चाहिए जो वैराग्य में परिवर्तित हो सके। आचार्य श्री सिरोंजा शांतिधाम के शांतिनाथ जिनालय में आयोजित पंचकल्याणक जिनबिंब प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन तपकल्याणक पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लक्ष्मण का राग राम के साथ वन में जाने का था। दिगंबर मुनि वैराग्य को सुरक्षित रखते हैं और इसलिए वे निर्मल विहार करते हैं। उन्होंने कहा कि दिगंबर मुनि के लिए सभी भौतिक संपत्तियाँ गौड़ हैं, उनकी असली संपत्ति तो रत्नत्रय है। उन्होंने संयम, शांति और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। महोत्सव में प्रभु ने विहार की शुरुआत की। बुधवार को मंगल प्रभात गीत के साथ इसका दिव्य शुभारंभ हुआ।

धार्मिक महोत्सव में वैराग्य और भक्ति का संगम

इसके बाद शांति मंत्राराधना और जापकिय अनुष्ठान ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। शांतिधारा, अभिषेक, जन्मकल्याणक पूजन और हवन जैसे दिव्य अनुष्ठान संपन्न हुए। विनायक यंत्र पूजन और महाराजा विश्वसेन दरबार का आकर्षक आयोजन हुआ, जिसमें विवाह संस्कार, राजाभिषेक, राजतिलक और 32 हजार राजाओं द्वारा भेंट समर्पण जैसे दृश्य सभी का ध्यान आकर्षित कर रहे थे। इसके बाद चौदह रत्न और नवनिधियों का वैभवशाली दर्शन और दिग्विजय यात्रा निकाली गई।

दोपहर में जन्मोत्सव का आयोजन, जातिस्मरण, वैराग्योत्पत्ति, लौकान्तिक देवों का आगमन, दीक्षाभिषेक और दीक्षा पालकी का प्रस्थान हुआ। सांयकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों से पहले मंगल आरती, भक्ति और प्रवचन हुए। महोत्सव के मुख्य जजमान संतोष जैन घड़ी परिवार हैं। महोत्सव में सौधर्म बनने का सौभाग्य डॉ सतेंद्र और श्रीमती रिचा जैन को प्राप्त हुआ है। भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य सुरेंद्र कुमार और श्रीमती शीला जैन को मिला है। तपकल्याणक के दिन महोत्सव स्थल पर श्रद्धालुओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक रही है।