धान की फसल में किसानों की चुनौतियाँ: खाद संकट और कीटों का प्रकोप
धान की फसल में किसानों की समस्याएँ

बसना जिले में इस वर्ष धान की फसल किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। खरीफ सीजन की शुरुआत में हुई भारी बारिश और उसके बाद लंबे समय तक सूखे ने फसल की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाला। प्रारंभिक बारिश ने खेतों में पानी भर दिया, लेकिन बाद में आए सूखे और तेज धूप ने पौधों को मुरझा दिया।
खाद की कमी और बढ़ती लागत
स्थिति तब और गंभीर हो गई जब सहकारी समितियों में डीएपी और यूरिया की भारी कमी ने किसानों को परेशान कर दिया। मजबूरी में किसानों को बाजार से महंगे दामों पर खाद खरीदनी पड़ी, जिससे खेती की लागत में कई गुना वृद्धि हो गई। हल्की बारिश ने फसल में जान डालने का काम किया, लेकिन शीत ब्लास्ट ने इसे बुरी तरह प्रभावित किया।
कीटों का प्रकोप और भूरा माहू
प्रगतिशील कृषक और किसान जनजागरण के उपाध्यक्ष सुशील भोई के अनुसार, इस वर्ष मौसम की अनुकूलता और धान की कमजोरी ने कीटों के प्रकोप को बढ़ा दिया है। बसना क्षेत्र के विभिन्न गांवों में किसानों ने कई बार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया, लेकिन नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। कई खेतों में पौधे सूखने लगे हैं और बालियां खाली रह गई हैं।
किसानों की मांगें और प्रशासन की भूमिका
वरिष्ठ कृषक रामनिधि पटेल ने बताया कि किसान हर स्तर पर संघर्ष कर रहा है। उन्होंने शासन से फसल बीमा सर्वेक्षण कराकर उचित मुआवजा देने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग की है। इस वर्ष बसना क्षेत्र के किसानों पर शीत ब्लास्ट, भूरा माहू और खाद संकट की तिहरी मार पड़ी है। यदि प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाता है, तो मेहनत, पूंजी और उम्मीद तीनों पर पानी फिर जाएगा।
