धनतेरस 2025: समुद्र मंथन की पौराणिक कथा और महत्व

धनतेरस 2025 का पर्व 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान धनवंतरि की पूजा का विशेष महत्व रखता है। इस लेख में हम जानेंगे समुद्र मंथन की पौराणिक कथा, जिसमें देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने की होड़ और भगवान धनवंतरि के प्रकट होने की कहानी शामिल है। यह पर्व केवल धन-संपत्ति का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और शांति का भी प्रतीक है।
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धनतेरस 2025: समुद्र मंथन की पौराणिक कथा और महत्व

धनतेरस का महत्व

धनतेरस 2025: समुद्र मंथन की पौराणिक कथा और महत्व

धनतेरस की कहानी

धनतेरस 2025 की कथा: हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा का विशेष महत्व है। इसके साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। धनतेरस का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को श्राप दिया था, जिसके कारण देवताओं की शक्तियां और तेज गायब हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली, जिससे पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।

भगवान विष्णु की सलाह पर समुद्र मंथन

भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वे अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन करें। इस सलाह के बाद देवताओं और असुरों ने मिलकर मंथन करने का निर्णय लिया। मंदार पर्वत को मंथन की छड़ी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर मंदार पर्वत को अपने पीठ पर धारण किया।

समुद्र मंथन से प्राप्त दिव्य निधियां

समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले घातक विष हलाहल निकला, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया और सृष्टि को विनाश से बचाया। इसके बाद कई दिव्य निधियां प्राप्त हुईं, जिनमें माता लक्ष्मी समृद्धि लेकर प्रकट हुईं।

भगवान धनवंतरि का प्रकट होना

समुद्र मंथन के अंत में भगवान धनवंतरि अमृत का पात्र और आयुर्वेद की एक प्राचीन पुस्तक लेकर प्रकट हुए। तभी से यह दिन धन्वंतरि त्रयोदशी या धनतेरस के नाम से जाना जाता है। यह पर्व केवल धन-संपत्ति का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और शांति का भी प्रतीक है।

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