दिल्ली हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग में रिक्त पदों पर केंद्र से मांगा स्पष्टीकरण

दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में लंबे समय से रिक्त पदों पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि आयोग की स्थिति चिंताजनक है और यह केंद्र सरकार की लापरवाही का परिणाम है। जानें इस मामले में कोर्ट की सख्त टिप्पणियाँ और आगे की कार्रवाई के बारे में।
 | 
दिल्ली हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग में रिक्त पदों पर केंद्र से मांगा स्पष्टीकरण

दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग में रिक्त पदों पर केंद्र से मांगा स्पष्टीकरण

हाई कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग में खाली पड़े पद को लेकर केंद्र से मांगा जवाब

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में लंबे समय से रिक्त पदों के संबंध में केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। न्यायालय ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए केंद्र को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ को बताया गया कि आयोग के अध्यक्ष का पद 22 अप्रैल से खाली है। केंद्र सरकार के वकील ने अधिकारियों से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा, जिस पर कोर्ट ने कहा कि कृपया सुनिश्चित करें कि कार्यवाही आगे बढ़े।

आयोग में पदों की रिक्तता पर चिंता

यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता मुजाहिद नफीस द्वारा दायर की गई है, जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में बताया गया है कि यह आयोग 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है। वर्तमान में आयोग में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत कई महत्वपूर्ण पद खाली हैं। मुजाहिद ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार की लापरवाही के कारण आयोग निष्क्रिय हो गया है, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

आयोग की स्थिति पर गंभीर चिंता

याचिका में कहा गया है कि आयोग के सभी महत्वपूर्ण पद खाली हैं। पूर्व चेयरपर्सन एस. इकबाल सिंह लालपुरा के कार्यकाल समाप्त होने के बाद से यह स्थिति बनी हुई है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने भी राज्यसभा में स्वीकार किया था कि आयोग वर्तमान में बिना सदस्यों के कार्य कर रहा है।

नियुक्तियों में देरी पर कोर्ट की नाराजगी

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि अदालत के पूर्व आदेशों का उल्लंघन भी है, जिसमें सरकार को समयबद्ध तरीके से नियुक्तियां करने का निर्देश दिया गया था। अब कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर जवाब देने को कहा है।