दिल्ली विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र अध्ययन पाठ्यक्रम पर विवाद
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा शुरू किए गए नए स्नातक पाठ्यक्रम ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ में मनुस्मृति को शामिल करने पर विवाद खड़ा हो गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि मनुस्मृति को किसी भी रूप में नहीं पढ़ाया जाएगा। पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को प्राचीन भारतीय समाज और कानून से परिचित कराना है। इस पाठ्यक्रम में चार खंड शामिल हैं, जिनमें धर्म की अवधारणा, आचार और व्यवहार, व्यवहार और राजव्यवस्था, और प्रायश्चित शामिल हैं। मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में लाने की कोशिश ने पाठ्यक्रम निर्माण की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।
Jun 12, 2025, 13:11 IST
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दिल्ली विश्वविद्यालय का नया स्नातक पाठ्यक्रम
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा शुरू किए गए नए स्नातक पाठ्यक्रम ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ में मनुस्मृति को मुख्य पाठ्यपुस्तक के रूप में शामिल करने पर विवाद उत्पन्न हो गया है। इस पाठ्यक्रम में वर्ण व्यवस्था, विवाह की सामाजिक भूमिका, नैतिकता और धर्म जैसे विषयों को पढ़ाने का प्रस्ताव था। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि मनुस्मृति को किसी भी रूप में नहीं पढ़ाया जाएगा।
पाठ्यक्रम का उद्देश्य और संरचना
‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ पाठ्यक्रम उन स्नातक छात्रों के लिए है जो संस्कृत में अच्छी पकड़ रखते हैं। इसका उद्देश्य छात्रों को प्राचीन भारतीय समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और कानून से संबंधित विचारधाराओं से परिचित कराना है।
इस पाठ्यक्रम में चार खंड शामिल हैं:
धर्म की अवधारणा– जिसमें रामायण, महाभारत, पुराण, कौटिल्य अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथों के माध्यम से धर्म को सामाजिक और नैतिक तत्व के रूप में पढ़ाया जाता है।
आचार, व्यवहार और प्रायश्चित– जहां वर्ण और आश्रम व्यवस्था, विवाह, शिक्षा, यज्ञ, दान आदि सामाजिक संरचना के भाग के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।
व्यवहार और राजव्यवस्था– जिसमें प्राचीन भारतीय न्याय प्रणाली, राजतंत्र, मंत्रियों की योग्यता और मंडल सिद्धांत जैसे राजनीतिक विचार शामिल हैं।
प्रायश्चित– जिसमें पापों के लिए तप, व्रत, दान, तीर्थयात्रा, श्राद्ध आदि उपाय बताए गए हैं।
मनुस्मृति का विवाद
इस पाठ्यक्रम के लिए जिन ग्रंथों को मुख्य पठन सामग्री के रूप में शामिल किया गया था, उनमें अपस्तंब धर्मसूत्र, बौधायन धर्मसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, और कौटिल्य अर्थशास्त्र के साथ-साथ मनुस्मृति भी प्रमुखता से सूचीबद्ध थी। जैसे ही मनुस्मृति की उपस्थिति की जानकारी सार्वजनिक हुई, विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय में किसी भी रूप में मनुस्मृति नहीं पढ़ाई जाएगी। यह निर्देश पहले भी दिया गया था, और विभागों को इसका पालन करना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत विभाग को यह पाठ्य सामग्री पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करनी चाहिए थी।
पिछले विवाद और वर्तमान स्थिति
यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुस्मृति को लेकर विवाद हुआ है। जुलाई 2023 में भी इतिहास (ऑनर्स) पाठ्यक्रम में इस ग्रंथ को शामिल करने के प्रस्ताव को भारी विरोध के बाद वापस ले लिया गया था। उस समय भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया था कि ऐसी कोई सामग्री जो समाज में विभाजन उत्पन्न करे, स्वीकार नहीं की जाएगी।
मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में लाने की कोशिश ने पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया की पारदर्शिता और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिक्षाविदों और छात्रों का एक वर्ग मांग कर रहा है कि विश्वविद्यालय की अकादमिक समितियों में व्यापक विचार-विमर्श और विविध दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
अकादमिक बहस और सामाजिक प्रभाव
मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को लेकर अकादमिक जगत में बहस चलती रही है— ये ग्रंथ प्राचीन भारत की सामाजिक संरचना की झलक दिखाते हैं, वहीं इनमें वर्ण और लिंग आधारित भेदभाव की आलोचना भी होती रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय की हालिया स्थिति यह दर्शाती है कि पाठ्यक्रमों में ऐसे ग्रंथों को शामिल करने से पहले सामाजिक प्रभाव और समावेशिता जैसे पहलुओं पर गंभीर विचार जरूरी है।