दिल्ली में वायु प्रदूषण: स्वास्थ्य संकट और समाधान की आवश्यकता

दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है, जहां प्रदूषक स्तर WHO की निर्धारित सीमा से कई गुना अधिक हैं। इस लेख में, हम भारत की नीतियों की कमी और चीन के अनुभवों से सीखने की आवश्यकता पर चर्चा करते हैं। जानें कि सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए और कैसे राजनीतिक इच्छाशक्ति इस समस्या का समाधान कर सकती है।
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दिल्ली में वायु प्रदूषण: स्वास्थ्य संकट और समाधान की आवश्यकता

वायु प्रदूषण की गंभीरता

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु में मौजूद सूक्ष्म कणों की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहरों में यह स्तर 700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच चुका है। इसका मतलब है कि एक कमरे में 21,500 माइक्रोग्राम प्रदूषक मौजूद हैं। चिकित्सक इसे प्रतिदिन 30 सिगरेट पीने के बराबर मानते हैं। वर्तमान में, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों में 150-200 माइक्रोग्राम PM2.5 को सामान्य माना जा रहा है। यदि हवा एक उपभोक्ता उत्पाद होती, तो उस पर चेतावनी होती कि 'सांस लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।'


नीतियों का अभाव

भारत की सबसे बड़ी समस्या नीतियों की कमी नहीं, बल्कि उन्हें लागू करने की इच्छाशक्ति का अभाव है। नियम केवल कागजों पर हैं, जबकि सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है। पुराने वाहनों पर रोक लगाने की बात होती है, लेकिन सार्वजनिक परिवहन की स्थिति अभी भी अपर्याप्त है। उद्योगों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन जब वे GDP में योगदान देते हुए वायु को प्रदूषित करते हैं, तो इस पर चुप्पी साध ली जाती है। कचरा जलाना, निर्माण स्थलों की धूल, डीज़ल वाहन, और थर्मल पावर प्लांट के लिए नियम हैं, लेकिन उनका पालन नहीं होता। इसलिए सर्दियों में जब हवा स्थिर होती है, तब शहर अपने ही धुएं में घुटने लगते हैं।


चीन से सीखने की आवश्यकता

यहां यह सवाल उठता है कि जब चीन वायु प्रदूषण से निपट सकता है, तो भारत क्यों नहीं? चीन में भारत से अधिक कारें और फैक्ट्रियां हैं, फिर भी वहां की हवा बेहतर है। यह कोई जादू नहीं, बल्कि कठोर निर्णयों का परिणाम है। चीन ने समय पर कोयले पर निर्भरता कम की, प्रदूषणकारी उद्योगों को शहरों से बाहर किया, इलेक्ट्रिक परिवहन को बढ़ावा दिया और पर्यावरणीय नियमों को सख्ती से लागू किया। वहां नियम तोड़ना महंगा है, जबकि भारत में नियम तोड़ना अक्सर आसान होता है।


सरकार की जिम्मेदारी

सरकार को सबसे पहले वायु प्रदूषण को एक आपातकालीन सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में स्वीकार करना होगा। केवल दिल्ली में कदम उठाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि पूरे एनसीआर क्षेत्र में समान नियम लागू करने होंगे। एनसीआर में सार्वजनिक परिवहन का तेजी से विस्तार करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, निर्माण स्थलों और कचरा प्रबंधन पर सख्ती बरतनी होगी, और उद्योगों के लिए प्रदूषण फैलाने पर जीरो टॉलरेंस नीति लानी होगी। इसके साथ ही, हरित क्षेत्रों का विस्तार भी आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए। जब तक स्वच्छ हवा को वोट का मुद्दा नहीं बनाया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।