दिल्ली में बिम्सटेक संगीत महोत्सव: सांस्कृतिक संवाद और कूटनीतिक दृष्टि का संगम
दिल्ली में आयोजित बिम्सटेक संगीत महोत्सव 'सप्तसुर' ने भारत की सांस्कृतिक कूटनीति और क्षेत्रीय नेतृत्व को एक नई दिशा दी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के उद्घाटन भाषण ने इस आयोजन को केवल संगीत का उत्सव नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था की खोज का मंच बताया। बिम्सटेक के माध्यम से भारत ने साझा धरोहरों और परंपराओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण मंच तैयार किया है। जानें इस महोत्सव के पीछे की रणनीति और इसके वैश्विक प्रभाव के बारे में।
Aug 5, 2025, 13:46 IST
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सप्तसुर महोत्सव का महत्व
दिल्ली, भारत में आयोजित बिम्सटेक पारंपरिक संगीत महोत्सव 'सप्तसुर' केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं था, बल्कि यह भारत की बहुपक्षीय कूटनीति, क्षेत्रीय नेतृत्व और सांस्कृतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उद्घाटन भाषण में इस आयोजन को सुर और ताल के उत्सव से आगे बढ़कर नई वैश्विक व्यवस्था की खोज का मंच बताया।
बिम्सटेक का महत्व
बिम्सटेक (BIMSTEC) यानी बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग संगठन, भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' और 'एक्ट ईस्ट' नीतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। 'सप्तसुर' महोत्सव के माध्यम से भारत ने एक ऐसा सांस्कृतिक मंच तैयार किया है, जहां राजनीतिक मतभेदों के बजाय साझा धरोहरों और परंपराओं का आदान-प्रदान हुआ। जयशंकर का यह कहना कि “परंपराएं शक्ति का स्रोत हैं” केवल सांस्कृतिक गर्व का संदेश नहीं, बल्कि यह एक सॉफ्ट पावर की रणनीति है जो वैश्विक विमर्श में भारत की भूमिका को मजबूत करती है।
वैश्विक व्यवस्था की खोज
भारत मंडपम में आयोजित इस कार्यक्रम में, जयशंकर ने स्वीकार किया कि “हम जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं” और यह भी जोड़ा कि दुनिया एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था की तलाश में है जो ‘कुछ शक्तियों के प्रभुत्व’ से मुक्त हो। यह वक्तव्य अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी वर्चस्व, विशेषकर अमेरिका और उसके सहयोगियों की वैश्विक संस्थाओं में मनमानी भूमिका पर प्रश्न उठाता है। इस संदर्भ में, बिम्सटेक जैसे मंच भारत को एक गैर-पश्चिमी क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करते हैं।
संस्कृति के माध्यम से पहचान
जयशंकर का यह कहना कि “हमारी परंपराएं हमारी पहचान को परिभाषित करती हैं” भारत की उस कूटनीतिक रणनीति की ओर इशारा करता है, जो संस्कृति के माध्यम से राष्ट्र की पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित करना चाहती है। यह वही सोच है जिसके तहत योग दिवस, अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष, खादी प्रचार, और अब यह संगीत महोत्सव भारत की सांस्कृतिक उपस्थिति को वैश्विक स्तर पर मजबूत कर रहे हैं।
बिम्सटेक के सदस्य देशों की भूमिका
बिम्सटेक के सात सदस्य— बांग्लादेश, भारत, म्यांमा, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान भू-राजनीतिक दृष्टि से भारत के लिए सुरक्षा, व्यापार और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण सेतु हैं। चीन के आक्रामक रवैये और सार्क की निष्क्रियता के बीच, बिम्सटेक का सशक्तिकरण भारत की पूर्वी सीमा पर एक नया सहयोगात्मक गढ़ बना रहा है। 'सप्तसुर' के माध्यम से भारत ने यह संकेत दिया कि वह न केवल सुरक्षा और व्यापार का नेतृत्व करेगा, बल्कि सांस्कृतिक नेतृत्व के लिए भी तैयार है।
सांस्कृतिक संवाद का महत्व
बहरहाल, 'सप्तसुर' कोई सामान्य सांस्कृतिक आयोजन नहीं था; यह भारत की उस रणनीति का सार्वजनिक संस्करण था जो सांस्कृतिक संवाद के माध्यम से वैश्विक सत्ता-संतुलन में अपनी भूमिका को मजबूत करना चाहती है। एस. जयशंकर का भाषण इस बात का संकेत था कि भारत “संयुक्त राष्ट्र से लेकर संगीत महोत्सव तक”, हर मंच पर एक अधिक न्यायसंगत, संतुलित और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था की पैरवी करेगा। जहां अन्य देश कूटनीति को केवल सैन्य या व्यापार तक सीमित रखते हैं, भारत ने यह दिखा दिया कि सांस्कृतिक विरासत भी वैश्विक शक्ति निर्माण का एक सशक्त उपकरण हो सकती है।
बिम्सटेक का इतिहास
बिम्सटेक, बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल, एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1997 में बैंकॉक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। शुरुआत में इसे बिस्टेक (बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड आर्थिक सहयोग) के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह बिम्सटेक के नाम से जाना जाता है और इसमें सात सदस्य देश शामिल हैं। इस संगठन में 1997 में म्यांमा और 2004 में भूटान और नेपाल को भी शामिल किया गया।