दिल्ली में फिदायीन हमले ने जिहाद की सोच पर उठाए सवाल
दिल्ली में आतंकवादी हमला

10 नवंबर की शाम को दिल्ली में एक फिदायीन हमले ने शहर को हिलाकर रख दिया। लालकिला मेट्रो स्टेशन के निकट एक कार में हुए विस्फोट ने कई निर्दोष लोगों की जान ले ली। यह घटना जिहाद से जुड़ी पुरानी धारणाओं को फिर से चुनौती दे रही है और यह सवाल खड़ा कर रही है कि सभ्य समाज इस समस्या पर अब तक निर्णायक जीत क्यों नहीं हासिल कर सका है?
आतंकवाद और शिक्षा का संबंध
भारत में पिछले कुछ दशकों में आतंकवाद को अक्सर वामपंथी मुस्लिम समुदाय की अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी से जोड़ा गया है। लेकिन सवाल यह है कि कश्मीरी डॉक्टर उमर नबी, अनंतनाग के डॉक्टर आदिल अहमद राठर, फरीदाबाद के डॉक्टर मुजम्मिल अहमद गनई और लखनऊ की डॉक्टर शाहीन सईद जैसे शिक्षित और समृद्ध मुस्लिमों ने जिहाद का रास्ता क्यों चुना?
इस्लाम में जिहादी सोच को बढ़ावा देने में मदरसा शिक्षा प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश मुस्लिम परिवारों के बच्चे यहीं से शिक्षा प्राप्त करते हैं, जहां कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रभाव होता है। हालांकि, आधुनिक विषयों जैसे गणित और विज्ञान को पढ़ाया जाता है, लेकिन इनका उपयोग या दुरुपयोग मानसिकता पर निर्भर करता है। यही कारण है कि ये शिक्षित लोग भी जिहाद की ओर बढ़ते हैं।
जिहादी हमलों का नेटवर्क
दिल्ली में हालिया हमले के तार कश्मीर से लेकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक जुड़े हुए हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने डॉ. आदिल को 6 नवंबर को गिरफ्तार किया था, जब वह आतंकवादी संगठन 'जैश-ए-मोहम्मद' के पर्चे चिपका रहा था। उसके लॉकर से एके-47 और अन्य हथियार बरामद हुए। इसी तरह, डॉ. मुजम्मिल के फरीदाबाद स्थित घर से विस्फोटक और बम बनाने के उपकरण मिले।
जिहादी मानसिकता केवल फिदायीन हमले तक सीमित नहीं है। हाल ही में गुजरात पुलिस ने डॉ. अहमद मोहिउद्दीन सैयद को उसके दो सहयोगियों के साथ गिरफ्तार किया, जो घातक राइसिन जहर बनाने की योजना बना रहे थे।
जिहाद और ऐतिहासिक संदर्भ
क्या धन के लालच में मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा जिहाद का रास्ता अपनाता है? भारतीय उपमहाद्वीप में एक बड़ा मुस्लिम वर्ग उन इस्लामी आक्रांताओं को अपना नायक मानता है, जिन्होंने भारत में हिंदुओं का कत्लेआम किया। इस वर्ग का मानना है कि 'गजवा-ए-हिंद' का धार्मिक दायित्व उन पर है।
पिछले दशकों में हुए जिहादी हमलों की प्रेरणा और ऐतिहासिक आक्रांताओं का चिंतन एक समान है। उदाहरण के लिए, महमूद गजनवी ने कहा था कि मूर्तिपूजकों के पूजास्थल को नष्ट करने वाले को कयामत के दिन बड़ा इनाम मिलेगा।
समाज में असहिष्णुता का नैरेटिव
हाल के समय में एक नया विषाक्त नैरेटिव बनाया जा रहा है, जिसमें मुस्लिम समाज की असहिष्णुता को मोदी सरकार की नीतियों से जोड़ा जा रहा है। लेकिन क्या यह सच है? 1947 में देश का विभाजन क्यों हुआ? कश्मीरी पंडितों का नरसंहार क्यों हुआ? ये सभी घटनाएं किसी उकसावे का परिणाम नहीं हैं, बल्कि जिहादी अवधारणाओं के कारण हुई हैं।
भारत एक ऐसा देश है जहां परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चलती हैं। लेकिन इस्लाम में खुलापन नहीं है, जिसका उदाहरण नूपुर शर्मा और सलमान रुश्दी जैसे लोगों के अनुभव हैं। जिहाद की बौद्धिक जड़ों पर चर्चा आवश्यक है, ताकि इस पर निर्णायक संघर्ष किया जा सके।
