दिल्ली में प्रदूषण: लंग्स पर गंभीर प्रभाव और स्वास्थ्य जोखिम

दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण लंग्स की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट डॉ. संदीप शर्मा के अनुसार, प्रदूषण लंग्स में गंभीर पैच का कारण बन रहा है, जिससे सांस की बीमारियों और कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। AQI के उच्च स्तर के कारण लंग्स की कार्यक्षमता में कमी आ रही है, और नॉन-स्मोकर्स में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। जानें कि प्रदूषण का लंग्स पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
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दिल्ली में प्रदूषण: लंग्स पर गंभीर प्रभाव और स्वास्थ्य जोखिम

प्रदूषण का लंग्स पर प्रभाव

दिल्ली में प्रदूषण: लंग्स पर गंभीर प्रभाव और स्वास्थ्य जोखिम

लंग्स को कितना नुकसान पहुंचा रहा प्रदूषण?

दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण लंग्स की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट डॉ. संदीप शर्मा ने एक विशेष बातचीत में बताया कि कोविड के दौरान लंग्स की स्थिति जैसी ही, प्रदूषण के कारण भी लंग्स में गंभीर पैच देखे जा रहे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।

लंग्स में पैच की वृद्धि

डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि प्रदूषण लंग्स के लिए अत्यंत हानिकारक है। उन्होंने बताया कि सीटी स्कैन और चेस्ट एक्सरे से लंग्स की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। हवा में मौजूद PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों में पहुंचते हैं, जिससे सांस की बीमारियों के साथ-साथ कैंसर का खतरा भी बढ़ता है।

लंग्स की कार्यक्षमता में कमी

डॉ. संदीप ने बताया कि प्रदूषण का लंग्स पर प्रभाव इस तरह समझा जा सकता है कि यदि AQI का स्तर 300 के आसपास है, तो यह दिनभर में 15 से 20 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान पहुंचाता है। प्रदूषित हवा सांस की नली में जलन और सूजन पैदा करती है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आती है।

गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं

लंग्स की खराब स्थिति के कारण गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जैसे कि दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण के कारण नॉन-स्मोकर्स में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। 2025 में भारत में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या लगभग 81,200 होने का अनुमान है।

प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और अस्थमा के मरीजों की अस्पताल में भर्ती होने की संख्या बढ़ गई है। इसके अलावा, प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों के विकास को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है और बुजुर्गों में मौजूदा श्वसन रोगों को गंभीर बना सकता है।