दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर, उपराज्यपाल ने केजरीवाल को लिखा पत्र
दिल्ली की हवा में खतरनाक प्रदूषण
दिल्ली एक बार फिर से अत्यधिक प्रदूषण की चपेट में है। 27 निगरानी केंद्रों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 के स्तर को पार कर चुका है, जिससे कई क्षेत्रों में स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। आनंद विहार, नेहरू नगर, ओखला, मुंडका और सिरीफोर्ट जैसे स्थानों पर सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। घना कोहरा, ठहरी हुई हवा और गिरता तापमान मिलकर प्रदूषण को और भी गंभीर बना रहे हैं।
इस बीच, उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 15 पन्नों का एक विस्तृत पत्र भेजकर राजधानी की जहरीली हवा के लिए उनकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। पत्र में यह आरोप लगाया गया है कि 11 वर्षों की उपेक्षा और आपराधिक निष्क्रियता ने दिल्ली को इस संकट में डाल दिया। यह पत्र तब आया है जब दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता प्रशासन चला रही हैं.
राजनीतिक जिम्मेदारी और प्रदूषण का मुद्दा
दिल्ली की वर्तमान वायु गुणवत्ता को देखते हुए अब बहानेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। उपराज्यपाल और केजरीवाल के बीच का यह पत्राचार केवल राजनीतिक कटाक्ष नहीं है, बल्कि एक कड़वा सच है जिसे सभी राजनीतिक दलों को स्वीकार करना होगा। 11 साल बनाम 11 महीने की बहस से जनता को राहत नहीं मिलेगी। सवाल यह है कि जिम्मेदारी कौन लेगा और कब।
केजरीवाल सरकार ने अपने कार्यकाल में प्रदूषण के खिलाफ ठोस कदम उठाने का वादा किया था, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। उपराज्यपाल का पत्र इस बात की याद दिलाता है कि संस्थागत विफलता एक दिन की कहानी नहीं होती, बल्कि यह वर्षों की अनदेखी का परिणाम है। निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल, कचरा जलाना, खराब सार्वजनिक परिवहन, औद्योगिक उत्सर्जन और क्षेत्रीय समन्वय की कमी ने मिलकर दिल्ली को गैस चेंबर में बदल दिया है.
दिल्ली सरकार की प्रतिक्रिया
पत्र का आक्रामक लहजा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जवाबदेही तय करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, केवल पूर्व शासन पर आरोप लगाकर वर्तमान सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। नई सरकार को संकट विरासत में मिला है, लेकिन अब टालमटोल का समय नहीं है। दिल्ली को दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। उपराज्यपाल का पत्र केजरीवाल के लिए आत्ममंथन का अवसर है और नई सरकार के लिए एक परीक्षा की घड़ी।
दूसरी ओर, दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि जीआरएपी के चौथे चरण में ढील के बावजूद 'नो पीयूसी नो फ्यूल' नीति जारी रहेगी। उन्होंने यह भी बताया कि पीयूसी केंद्रों की जांच में खामियां पाई गई हैं, जिसके चलते 12 केंद्रों को निलंबित किया गया है और जल निकायों के पुनरुद्धार के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.
