दिल्ली में दिवाली पर ग्रीन पटाखों की वापसी: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

दिल्ली में इस दिवाली ग्रीन पटाखों के उपयोग की अनुमति मिलने की संभावना है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में संकेत दिया है। ग्रीन क्रैकर्स, जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण फैलाते हैं, को सीमित उपयोग की अनुमति दी गई है। हालांकि, इनकी प्रमाणिकता और बाजार में नकली उत्पादों की चिंता बनी हुई है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि भले ही प्रदूषण में कमी आए, लेकिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता पहले से ही खतरनाक स्तर पर है। इस दिवाली, यह देखना होगा कि ग्रीन पटाखों का वादा वास्तव में हवा में सुधार ला पाता है या नहीं।
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दिल्ली में दिवाली पर ग्रीन पटाखों की वापसी: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

दिल्ली में ग्रीन पटाखों की अनुमति

इस वर्ष दिवाली पर दिल्ली में कानूनी रूप से पटाखों की आवाज़ सुनाई देने की संभावना है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि एनसीआर में 'ग्रीन क्रैकर्स' यानी पर्यावरण-अनुकूल पटाखों के उपयोग पर लगी पाबंदी को अस्थायी रूप से हटाया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पीठ ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखा है, लेकिन फिलहाल ग्रीन पटाखों के सीमित उपयोग की अनुमति दी गई है।


ग्रीन क्रैकर्स की विशेषताएँ

ग्रीन क्रैकर्स ऐसे पटाखे हैं जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इन्हें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की इकाई, नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) द्वारा विकसित किया गया था। 2018 में, तीन प्रमुख श्रेणियाँ पेश की गईं: SWAS (Safe Water Releaser), STAR (Safe Thermite Cracker) और SAFAL (Safe Minimal Aluminium)। इन पटाखों में हानिकारक तत्वों जैसे पोटैशियम नाइट्रेट और सल्फर को हटा दिया गया है, जिससे धुएं और गैसों के उत्सर्जन में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आती है।


चुनौतियाँ और चिंताएँ

हालांकि, ग्रीन क्रैकर्स के साथ कई व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। दिल्ली में इनकी प्रमाणिकता की जांच के लिए कोई लैब या परीक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं है। CSIR-NEERI और PESO से प्रमाणित कंपनियों को ही इन्हें बनाने की अनुमति दी गई है, लेकिन बाजार में नकली उत्पादों की आशंका बनी हुई है। पैकेट्स पर ग्रीन लोगो और QR कोड अनिवार्य किए गए हैं, ताकि असली उत्पाद की पहचान की जा सके, लेकिन कई रिपोर्टों में नकली QR कोड के फैलने की जानकारी मिली है।


पर्यावरण पर प्रभाव

पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी का कहना है कि भले ही ग्रीन पटाखों से प्रदूषण में 30% तक कमी आती हो, लेकिन दिल्ली जैसे शहर में दिवाली के दौरान वायु गुणवत्ता पहले से ही खतरनाक स्तर पर पहुँच जाती है। उन्होंने कहा, 'जब PM2.5 का स्तर WHO की सीमा से 800 से 1500% तक बढ़ जाता है, तब 30% की कमी का कोई व्यावहारिक असर नहीं होता।' स्थानीय निवासियों के संघ (RWA) के प्रतिनिधि चेतन शर्मा ने भी कहा कि सर्दियों से ठीक पहले इन पटाखों की अनुमति देना 'जोखिम भरा' फैसला है।


सुप्रीम कोर्ट का रुख

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का रुख ग्रीन क्रैकर्स के मामले में परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है। यह स्पष्ट है कि असली परीक्षा इस दिवाली पर होगी, जब देखा जाएगा कि 'कम प्रदूषण' का वादा वास्तव में दिल्ली की हवा में कोई राहत ला पाता है या नहीं।