दिल्ली कार धमाके के पीछे की सामाजिक और वैचारिक विफलताएँ

दिल्ली में हाल ही में हुए कार धमाके ने सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक और वैचारिक विफलताओं को उजागर किया है। यह सवाल उठता है कि क्यों शिक्षित वर्ग आतंकवाद की ओर बढ़ रहा है और भारत में धार्मिक पहचान के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोग कैसे सक्रिय हैं। इस लेख में हम इन मुद्दों पर गहराई से विचार करेंगे और समझेंगे कि कैसे यह मानसिकता आतंकवाद को बढ़ावा देती है।
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दिल्ली कार धमाके के पीछे की सामाजिक और वैचारिक विफलताएँ

सुरक्षा और सामाजिक विफलता का मुद्दा

दिल्ली में हुए कार धमाके को केवल सुरक्षा की असफलता के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह एक सामाजिक और वैचारिक विफलता भी है। यह विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे इंजीनियर, डॉक्टर और प्रोफेसर, जो राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जिम्मेदार हैं, वे आतंकवाद की ओर क्यों बढ़ रहे हैं? यह भी सवाल उठता है कि चीन में ऐसी समस्याएँ क्यों नहीं हैं? वहां राष्ट्र की प्राथमिकता सर्वोपरि है— कोई विचारधारा, धर्म या संगठन देश से ऊपर नहीं रखा जा सकता। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देशविरोधी विचारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया जाए। अब समय आ गया है कि कानून के प्रति डर का पुनर्जागरण होना चाहिए। उन लोगों के लिए, चाहे वे विश्वविद्यालयों में हों, धार्मिक संस्थानों में या सोशल मीडिया पर, जो आतंकवादी सोच रखते हैं, एक ही संदेश होना चाहिए कि भारत के खिलाफ़ सोचने की कीमत बहुत भारी होगी। हमें केवल नारे नहीं, बल्कि ठोस नीतियों की आवश्यकता है। धर्म के नाम पर देश को तोड़ने वालों के लिए ज़ीरो टॉलरेंस ही असली धर्म है।


आतंकवाद का नया चेहरा

जब देश में आतंक की घटनाएँ होती हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि आतंकवाद अब केवल सीमाओं के पार से नहीं आ रहा, बल्कि यह हमारे समाज के कुछ हिस्सों में भी पनप रहा है, विशेषकर शिक्षित वर्गों में। यह तथ्य अब छिपा नहीं है कि कुछ लोग धार्मिक पहचान और विचारधारा के पीछे छिपकर भारत विरोध का जहर फैला रहे हैं। इंटरनेट से लेकर विश्वविद्यालयों तक, एक सूक्ष्म लेकिन संगठित अभियान चल रहा है— जो राष्ट्र की नीतियों, सेना और संविधान के प्रति अविश्वास पैदा कर रहा है। यही मानसिकता आतंकवाद का पहला बीज है। जब कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक या वैचारिक निष्ठा को राष्ट्रनिष्ठा से ऊपर रखता है, तो वह अनजाने में आतंकवाद की ओर बढ़ता है। भारत की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी “अत्यधिक सहिष्णुता” बन गई है। यहां नफ़रत फैलाने वाले लोग “अल्पसंख्यक अधिकारों” के नाम पर बच निकलते हैं।


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