दिल्ली का तंदूर हत्याकांड: एक खौफनाक रात की सच्चाई
दिल्ली के तंदूर हत्याकांड की कहानी
2 जुलाई 1995, गोल मार्केट, नई दिल्ली, सरकारी फ्लैट नंबर 8/2ए, रात के साढ़े आठ बजे
अचानक फ्लैट नंबर 8/2ए से गोलियों की आवाज सुनाई देती है। पड़ोसी सोचते हैं कि शायद पटाखे फूट रहे हैं।
कुछ समय बाद, अचानक खामोशी छा जाती है। थोड़ी देर बाद, फ्लैट का दरवाजा खुलता है और एक व्यक्ति पॉलिथीन में कुछ भारी चीज खींचता हुआ बाहर आता है। वह एक कार के पास पहुंचता है, पॉलिथीन को डिक्की में रखता है और तेजी से कार चला ले जाता है।
कार कनॉट प्लेस के अशोक यात्री निवास के पास बगिया रेस्तरां के सामने रुकती है। उस समय रेस्तरां में कुछ लोग खाना खा रहे थे। कार से वही व्यक्ति उतरता है और रेस्तरां के मैनेजर के पास जाता है।
‘तंदूर हत्याकांड’ की कहानी
कार चलाने वाला व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि दिल्ली यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष सुशील शर्मा था। पॉलिथीन में जो था, वह उसकी पत्नी नैना साहनी थी। आज हम आपको दिल्ली के प्रसिद्ध ‘तंदूर हत्याकांड’ की कहानी सुनाएंगे।
1995 में, सुशील शर्मा कांग्रेस के यूथ विंग का सक्रिय सदस्य था। उसकी मुलाकात नैना साहनी से हुई और दोनों ने शादी कर ली। नैना ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और कॉमर्शियल पायलट बनने का सपना देखा।
बीवी पर अवैध संबंध का शक
समय के साथ, सुशील और नैना के बीच तनाव बढ़ने लगा। सुशील को शक था कि नैना का किसी और के साथ अफेयर है। इस पर कई बार उनकी लड़ाई भी हुई। नैना ऑस्ट्रेलिया जाने की योजना बना रही थी।
2 जुलाई 1995 को, नैना फोन पर किसी से बात कर रही थी जब सुशील घर आया। नैना ने ड्रिंक का प्रस्ताव दिया, लेकिन सुशील ने मना कर दिया। जब नैना दूसरे कमरे में गई, तो सुशील ने फोन उठाया और देखा कि दूसरी तरफ मतलूब करीम था।
सुशील ने गुस्से में नैना को बुलाया और कहा, ‘तुम्हारा प्यार अभी तक खत्म क्यों नहीं हुआ मतलूब से?’ नैना ने जवाब दिया, ‘इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।’ इस पर सुशील का गुस्सा भड़क गया।
सुशील ने पिस्टल निकाली और नैना पर चार गोलियां चलाईं। नैना बेड पर गिर गई। सुशील ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई।
बगिया रेस्टोरेंट में लाश के टुकड़े
सुशील ने लाश को चादर में बांधकर अपनी कार में रखा और बगिया रेस्तरां पहुंचा। वहां उसने रेस्तरां बंद करने को कहा और लाश के टुकड़े करने लगा।
सुशील ने केशव के साथ मिलकर लाश के टुकड़े किए और उन्हें तंदूर में डालने लगा। आग तेज करने के लिए मक्खन का इस्तेमाल किया गया। लेकिन तंदूर से उठती आग की लपटें पास में सो रही एक महिला की नजर में आ गईं।
महिला ने शोर मचाया, जिससे पुलिस को सूचना मिली। जब पुलिस मौके पर पहुंची, सुशील भाग चुका था।
केशव ने पुलिस को बताया कि वह पुराने पोस्टर जला रहा था। लेकिन जब पुलिस ने तंदूर में झांका, तो अधजली लाश के टुकड़े मिले।
सजाए मौत की कहानी
यह घटना पूरे दिल्ली में चर्चा का विषय बन गई। पुलिस ने सुशील को खोजने के लिए चार टीमें बनाई। सुशील ने 10 जुलाई 1995 को आत्मसमर्पण किया।
7 नवंबर 2003 को, सुशील को फांसी की सजा सुनाई गई। 2015 में वह कुछ समय के लिए पैरोल पर बाहर आया और दिसंबर 2018 में रिहा कर दिया गया। लेकिन अब वह कहां है, यह किसी को नहीं पता।
