दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री का विवरण सार्वजनिक करने का आदेश रद्द किया
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए केंद्रीय सूचना आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री का विवरण सार्वजनिक करने के लिए कहा गया था। विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि निजता का अधिकार जानने के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है। इस मामले में आरटीआई आवेदक ने शैक्षिक रिकॉर्ड के प्रकटीकरण की अनुमति मांगी थी, जिसे न्यायालय ने अंततः खारिज कर दिया। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके पीछे के तर्क।
Aug 25, 2025, 17:25 IST
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दिल्ली विश्वविद्यालय की अपील पर न्यायालय का निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयुक्त के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। 2016 में, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के अभिलेखों की जांच की अनुमति दी थी, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल था। दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके बाद जनवरी 2017 में सुनवाई पर रोक लगा दी गई थी। सुनवाई के दौरान, विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क किया कि आरटीआई आवेदन पर सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि निजता का अधिकार जानने के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है।
दिल्ली विश्वविद्यालय का तर्क
दिल्ली विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि वह छात्रों की जानकारी को एक प्रत्ययी क्षमता में रखता है और केवल जिज्ञासा के आधार पर आरटीआई कानून के तहत निजी जानकारी मांगने का औचित्य नहीं बनता। विश्वविद्यालय ने तर्क किया कि धारा 6 में यह अनिवार्य प्रावधान है कि जानकारी दी जानी चाहिए, लेकिन आरटीआई अधिनियम किसी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए नहीं है। हालांकि, विश्वविद्यालय ने अदालत को बताया कि वह प्रधानमंत्री मोदी के डिग्री रिकॉर्ड को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए तैयार है, लेकिन अजनबियों द्वारा जांच के लिए इसे प्रकट नहीं कर सकता।
आरटीआई आवेदक का पक्ष
आरटीआई आवेदक नीरज शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने सीआईसी के आदेश का समर्थन करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम व्यापक जनहित में प्रधानमंत्री के शैक्षिक रिकॉर्ड के प्रकटीकरण की अनुमति देता है। उन्होंने यह भी बताया कि आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी आमतौर पर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित की जाती है और इसे नोटिस बोर्ड, वेबसाइट और समाचार पत्रों में भी देखा जा सकता है। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने विश्वविद्यालय की अपील को स्वीकार करते हुए आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया।