दिल्ली उच्च न्यायालय ने टीएमसी सांसद को सिविल हिरासत की चेतावनी दी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले को पूर्व राजनयिक लक्ष्मी मुर्देश्वर पुरी से माफी मांगने का आदेश दिया है। यदि गोखले इस आदेश का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें सिविल हिरासत में रखा जा सकता है। न्यायालय ने गोखले पर यह आरोप लगाया है कि वे अदालत की प्रक्रिया का मजाक बना रहे हैं। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और अदालत के आदेश के पीछे की कहानी।
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने टीएमसी सांसद को सिविल हिरासत की चेतावनी दी

साकेत गोखले को माफी मांगने का आदेश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद साकेत गोखले को पूर्व राजनयिक लक्ष्मी मुर्देश्वर पुरी से माफी मांगने के लिए दिए गए न्यायिक आदेश का जानबूझकर पालन न करने पर 'सिविल हिरासत' में रखने की चेतावनी दी।


अदालत ने यह भी कहा कि गोखले अदालत की प्रक्रिया का मजाक बना रहे हैं। न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा ने कहा, "मैं आपको नोटिस दे रहा हूं। यदि आप माफीनामा नहीं प्रकाशित करते हैं, तो हम आपको 'सिविल हिरासत' में रखेंगे।"


न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि गोखले को जेल जाना पड़ सकता है। 'सिविल हिरासत' में उन व्यक्तियों को रखा जाता है, जिन्हें विचाराधीन कैदियों से अलग रखा जाता है।


उच्च न्यायालय ने गोखले को निर्देश दिया कि वे एक जुलाई, 2024 तक पुरी के खिलाफ सोशल मीडिया या अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्मों पर कोई सामग्री प्रकाशित न करें और उन्हें 50 लाख रुपये का हर्जाना भी देना होगा।


पुरी ने गोखले के खिलाफ मानहानि याचिका दायर की है, क्योंकि उन्होंने 2024 के फैसले का पालन नहीं किया। उच्च न्यायालय की समन्वय पीठ ने गोखले को 9 मई को निर्देश दिया था कि वे अपने 'एक्स' हैंडल से माफीनामा प्रकाशित करें।


पीठ ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर एक प्रमुख समाचार पत्र में भी माफीनामा प्रकाशित कराने के लिए कहा था। न्यायमूर्ति अरोड़ा को बताया गया कि दो सप्ताह की समयसीमा 23 मई को समाप्त हो गई थी, लेकिन गोखले ने अभी तक माफीनामा नहीं प्रकाशित किया।


गोखले के वकील ने अदालत को सूचित किया कि उन्होंने 9 मई के आदेश का पालन नहीं किया। इसके बाद अदालत ने कहा, "ऐसा लगता है कि गोखले अदालत की प्रक्रिया का मजाक बना रहे हैं।"


अदालत ने कहा, "एक जुलाई, 2024 के फैसले का जानबूझकर पालन न करने के लिए गोखले को नोटिस दिया जाता है कि उन्हें नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के तहत 'सिविल हिरासत' में क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए।