दिल्ली अदालत ने व्यभिचार में रह रही पत्नी को गुजारा भत्ता देने से किया इनकार

अदालत का निर्णय
दिल्ली की एक अदालत ने एक तलाकशुदा महिला द्वारा वित्तीय सहायता की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि जो पत्नी व्यभिचार में है, वह अपने पति से किसी भी प्रकार का गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार नहीं है।
याचिका की सुनवाई
परिवार अदालत की न्यायाधीश नमृता अग्रवाल ने महिला की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें यह दावा किया गया था कि उसका पति कानूनी और नैतिक रूप से भरण-पोषण देने के लिए बाध्य है, लेकिन वह जानबूझकर इसे नजरअंदाज कर रहा है।
तलाक का आधार
अदालत ने 20 अगस्त को दिए गए आदेश में कहा कि दूसरी अदालत ने मई में दंपति को तलाक दिया था, क्योंकि पत्नी व्यभिचार में रह रही थी और विवाह के दौरान अपने पति के प्रति वफादार नहीं थी।
डीएनए परीक्षण का महत्व
इसने यह भी बताया कि पूर्ववर्ती अदालत ने डीएनए परीक्षण रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि महिला उनके एक बच्चे की जैविक मां है, लेकिन पति उसका जैविक पिता नहीं है।
महिला की स्थिति
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने डीएनए परीक्षण रिपोर्ट और फैसले को चुनौती नहीं दी है, जिससे यह साबित होता है कि वह व्यभिचार में रहने की बात स्वीकार करती है। इसके अलावा, महिला पर अपनी सास की हत्या का आरोप भी लगाया गया था, जिसके चलते वह लगभग चार साल तक जेल में रही।
भरण-पोषण का अधिकार
अदालत ने यह भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (4) के अनुसार, यदि कोई पत्नी व्यभिचार में है, तो वह अपने पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं होती। इसके अलावा, महिला किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही है और उसके पास विभिन्न संपत्तियां हैं, जिनसे वह पर्याप्त आय अर्जित कर रही है।